इसी तरह समय बीतता चले गया जब दयाराम सोलह साल का हो गया ।
तब उसके परिवार ने उसकी शादी करा दिए
और हां दयाराम को तीन बहन और एक भाई भी था ।
दयाराम जब शादी करके अपनी पत्नी को जब घर ले कर आया तो उसके मां बहन नयी नवेली दुल्हन को प़ेतारित करने लगा ।
कभी दहेज के लिए तो कभी दहेज मे आया हुआ सामान के लिए।
अगर बहु कुछ बोलती मां बेटे से कहकर मार खिलाती बहु चूप चाप सब सहती रहती थी हमेशा ।
दयाराम की पत्नी का नाम लीला देवी था ।
कभी -कभी लीला देवी का पति बहुत गुस्से वाला था
लीला देवी की सास ननद उसके पति के इतने भरते कि दयाराम जी इतने गुस्से हो जाते कि पत्नी को जान से मारने के लिए तैयार हो जाता था
दयाराम जीअपनी पत्नी को पूरी रात जगाकर अपने पेरो का मालिस करवाया करते थें।
और धमकीं भी देत अगर एक बार भी सोई तो जान से मार दूंगा।
लीला देवी डर जाती और चूप चाप पूरी रात जग कर पति की सेवा करतीं ।
दयाराम जी तो कभी तो दबिया और रस्सी लेकर तैयार था ।
लीला देवी को काटकर नदी मे बहा देंगे ये बात जब लीला देवी को पता चलता तो लीला देवी बाहर ही सो जाती ।
अपने रूम में नहीं आती।
कभी घर के पीछे बाहर में सो जाती।
इसी तरह दो साल बीत गया।और लीला देवी को एक बेटी हुई । एक साल बाद एक और बेटी हुई ।दो बेटी होने के बाद
लीला देवी को उसकी सास ननद तुम सिर्फ बेटी को जन्म देती हो बेटा नहीं होगा तुम्हें। तुम बेटे का आंख नहीं देख पाओगी । दयाराम जी परिवार वाले उनकी दुसरी शादी करा दिए।
जब दूसरी पत्नी दयाराम जी को और उसके परिवार को
परेशान करने लगी।तब जाकर दयाराम जी को एहसास हुआ कि उसने अपनी लाइफ में बहुत बरी गलती कर दी ।
तब जाकर दयाराम जी अपनी पत्नी लीला देवी से मदद मांगी।और दुसरी पत्नी को छोड़ने का निर्णय किया। दयाराम और लीली दोनों मिलकर दुसरी पत्नी को उसके मायके छोड़ने का निर्णय लिया और कभी ना लाने का कसम खाया।
लेकिन अब वो जाने के लिए तैयार नहीं थी।
बहुत मुश्किल से दोनों पति पत्नी उसको मायके छोड़ा लेकिन ये बात उसके परिवार को मनजुर नहीं था ।
दोनों को अलग कर दिया। अलग होकर दयाराम जी ने एक
दुकान खोला और अपना परिवार चलाने लगा।
सब कुछ ठीक चल रहा था।
फिर से दयाराम जी के घर एक लड़की हुआ ।दो बेटीयां पहले से था। एक और बेटी हो गया। दयाराम की बहन जब ये देखा । कि लड़की पैदा हुआ।तो डॉक्टर को बोलने गई।इसे जहर का सुई देकर इसे मार दिजिए। लेकिन डॉक्टर इस के लिए तैयार नहीं हुआ।जब कुछ बीत गया।तब उसके परिवार ने उसको इतना उल्टा सीधा बोलता कि दयाराम जी को इतना गुस्सा आता कि दयाराम जी गुस्से में अपने बेटी को ही जान से मारने चलें जातें थे।जब दयाराम जाते तो वो छोटी सी बच्ची दयाराम जी के मुंह देखने लगती थी।
दयाराम जी को अपने बच्ची प्रति दया ।
आ गया और उसने उसे छोड़ दिया।और सब हसी खुशी रहने लगें। लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था।
एक दिन दयाराम शहर से अपने दुकान का सामन लेकर घर वापस आ रहा था। रास्ते मे दयाराम के साथ ऐसी दुघर्टना हुई । कि दयाराम जी का एक पैर थेपचर हो गया और दूसरा टूट गया। उसी के साथ वालो ने दयाराम जी को अस्पताल में भर्ती कराया। दयाराम जी के परिवार को खबर पहुंचाया और बोला कम-कम पांच लाख रुपया जमा करो लेकिन उसके परिवार वाले किसी ने उसका साथ नहीं दिया। उसके परिवार के सब लोगों ने उसे मरने छोर दिया।तब जाकर लीला देवी ने अपने घर हर एक वो चीज बेचकर जो उन्होंने अपने मेहनत से जमा किया था ।सब को बेचकर लीला देवी ने पांच लाख रुपया जमा किया। लीला देवी ने इतना भी नहीं रखा ।कि मैं और मेरे बच्चे कल क्या खायेंगे।जब लीला देवी अपने छोटी को लेकर अपने पति को देखने अस्पताल गए। इधर उसके परिवार ने उनके दोनों बेटियों को मारकर घर से बाहर निकाल दिया।जब लीला देवी शाम में घर वापस आई तो देखा उसके बच्चे घर पर नहीं है।जब परिवार वालों से पूछा तो बोला उन लोगों ने बोला उसके बच्चे को नहीं देखा।तब गांव में ढूंढने लगी अपने बच्चे को तब पता चला कि गांव वालों ने उसके बच्चे को पकरके रखा है। उसके परिवार ने बच्चों को घर से बाहर निकाल दिया। लीला अपने दो बेटियो को अपने मायके भेज दिया।और छोटी बेटी को लेकर अस्पताल चले गए।कराकर ठंड मोसम था ।जब एक से दो महीने बीत गया। लीला की छोटी बेटी को ठंड लग गया और उसे बचा नहीं पाई ।
छः महीने बाद जब दयाराम घर आया तब तक एक पैर कट चुका था लाठी के सहारे चलता था।जब दयाराम जी अपने दरबाजे पर पहुचा ।तो उसके परिवार ने कहा तुम अपनी पत्नी को छोड़ दो तब हम तुम्हें रहने और खाने देंगे
दयाराम ने कहा मैं अपनी पत्नी को नहीं छोड़ूंगा।ये बात सुनकर उसके परिवार ने उन दोनो को घर से निकाल दिया।फिर से लीला देवी ने गांव के बाहर खाली पर अपनी एक झोपड़ी बनाकर रहने लगी ।वो छोटी सी जमीन को उपजाति और पति की देखभाल करतीं । दयाराम जी ने सोचा इस तरह कब तक चलेगा।
दयाराम जी ने लोन लेन का सोचा लेकिन लोन तो अच्छे लोगों को नहीं मिलता तो बिकलांग आदमी को कहां से मिलता। लेकिन दयाराम का जक दोस्त था जिसने दयाराम जी की लोन लेने में मदद की थी।जब लोन मिल गया तब थोरी सी जमीन किराए पर लिया।और अपन दुकान शुरू किया। और अच्छे से कमाने लगा और रहने खाने लगा।
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Writer Priti kumari
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