The Sure Foundation of a Successful Life – Patience:
धैर्य जीवन का एक ऐसा गुण है, जिसके गर्भ से बाकी सब गुण प्रस्फुटित होते हैं। यदि व्यक्ति में धैर्य नहीं है तो उसकी शक्ति-दुर्बलता में बदल जाती है व मेहनत का वो फल नहीं मिल पाता, जिसका वह हकदार है। यदि व्यक्ति में धैर्य नहीं है तो वह जीवन के पूर्ण आनंद से वंचित रह जाता है। जिसमें धैर्य है, समझो उसने काल को भी अपने पक्ष में करने की कला जान ली। विरोधियों की क्या बिसात, दुश्मन भी ऐसे धीर-वीर का लोहा मानने के लिए बाध्य हो जाते हैं; क्योंकि धैर्य व्यक्ति को सहिष्णु बनाता है। ऐसे व्यक्ति के जीवन के अभावों, कष्टों, विरोधों और विषमताओं के बीच उसके अंतस् में जल रहा धैर्य का दीपक उसे रोशनी देता है कि समय पर सब ठीक हो जाएगा। परिस्थितियों पर व्यक्ति का नियंत्रण नहीं होता, लेकिन मनःस्थिति तो बहुत कुछ उसके हाथ में ही है, जिसको धैर्य के बल पर वह सँभाले रहता है और अनुकूल दिशा देता है।
धीर-वीर जीवन की विषमताओं एवं प्रतिकूलताओं के बीच अपना धैर्य नहीं खोता, विश्वास बनाए रखता है। धैर्य उसे अनावश्यक प्रतिक्रिया व नकारात्मकता से बचाता है। बजाय इनमें समय बरबाद करने के वह अपने अंदर झाँकता है, घटना के मूल में उतरता है और उसके कारण को खोजकर जड़-मूल से समाधान की राह तलाशता है। परिस्थितियों के भँवर में उलझने के बजाय वह इनसे पार निकलने की राह निकालता है। जीवन के क्षणिक यथार्थ को समझकर इसके पीछे निहित अनंत संभावनाओं को साकार करने की दिशा में बढ़ चलता है।
धीर व्यक्ति जानता है कि बोए बीज का फल समय पर मिलेगा, अत: वह हर पल का सदुपयोग करता है। वह नन्हे-नन्हे कदमों के साथ अभीष्ट लक्ष्य की ओर निरंतर गतिशील रहता है। सच्चिंतन, सत्कर्म व सद्भाव की त्रिवेणी में निरंतर स्नान करता है, सत्कर्म की बोई फसल के फलित * होने का इंतजार करता है। वह संत कबीर के द्वारा उस वचन ॐ के मर्म को समझता है, जो कहता है-
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कछु होय।
माली सींच सौ घड़ा, ऋतु आये फल होय ॥
इस तरह धैर्य जीवन में उसका अभिन्न सहचर बनता है। धैर्य का फल हालाँकि शुरू में कडुआ प्रतीत होता है, लेकिन इसका फल अंततः मीठा ही होता है। धैर्यवान व्यक्ति एक किसान की मनोदशा में जीता है, जो बीज से फसल बनने तक की धीमी, किंतु क्रमिक प्रक्रिया को बखूबी जानता है।
लौकिक जीवन की तरह आध्यात्मिक जीवन में भी धैर्य एक विशिष्ट गुण है, बल्कि इसकी आवश्यकता एवं महत्त्व यहाँ और भी अधिक है। लौकिक जीवन में पुरुषार्थ के फल की इच्छा इसी जन्म की रहती है, लेकिन एक साधक अपनी चेतना के रूपांतरण से लेकर आत्मसाक्षात्कार एवं ईश्वरप्राप्ति जैसे आध्यात्मिक लक्ष्यों को पाने हेतु जन्म- जन्मांतर की प्रतीक्षा के साथ साधनारत होता है। वह अपनी आत्मा के अजर, अमर, अविनाशी स्वरूप को मानते हुए, उसी के अनुरूप अनंत धैर्य के साथ अभीष्ट लक्ष्य हेतु साधना-पथ पर डटा रहता है।
धैर्य जीवन का एक ऐसा गुण है, जिसको धारण कर हम बाहरी जीवन में परिपूर्ण सफलता को हासिल कर सकते हैं और साथ ही आंतरिक जीवन में शांति के अधिकारी बन सकते हैं। वर्तमान समय में धैर्य का महत्त्व और भी बढ़ गया है, जब तुरत-फुरत सफलता, बुलंदी, नाम, दाम व वैभव की अंधी दौड़ चलन बन चुकी है। इनके परिणामस्वरूप व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवन से छीनती शांति, स्थिरता व संतुलन की त्रासदी भी हमारे सामने प्रत्यक्ष है।
अनंत धैर्य का राज शायद इस तथ्य में है कि अपनी मौलिकता के अनुरूप हमारे जीवन का लक्ष्य हमें कितना स्पष्ट है? यह जितना स्पष्ट होगा, उतना हम दूसरों से अनावश्यक प्रतिद्वंद्विता में उलझे बिना अपने निर्धारित लक्ष्य की ओर धैर्य से आगे बढ़ रहे होंगे। धैर्यपूर्वक जीवनलक्ष्य की ओर निरंतर प्रगति करते रहना ही सफल जीवन का राज है।
Amit Sharma
Writer