Success Comes from Positive Thinking:
मनुष्य के जीवन की सच्चाई यह है कि इसमें हमेशा, हर कदम पर चुनौतियाँ खड़ी मिलती हैं। चुनौतियाँ कभी हमारे सामने होती हैं तो कभी, हम उनके सामने. अंतर मात्र इस बात का है कि कब हम सकारात्मक होते हैं और कब नकारात्मक. जीवन विद्या के मर्मज्ञों का अनुभव है कि हम जब सकारात्मक होते हैं तो हमारी ऊर्जा के समस्त आंतरिक स्रोतों में स्वतः स्पंदन आरंभ हो जाता है और धीरे-धीरे सारे ऊर्जाकेंद्र जाग्रत होने लगते हैं व उनमें अंतर्निहित शक्तियों का ऊर्ध्वगमन होने लगता है।
जीवन की सकारात्मकता थोड़े समय में ही हमारे भीतर स्फूर्ति और ताजगी का एहसास कराने लगती है। हमारा मनोबल-आत्मबल-संकल्पबल बढ़ने लगता है. ऐसी स्थिति में हम एक वीर योद्धा की भाँति चुनौतियों का सामना कर पाते हैं और उन पर विजय प्राप्त करना ही एकमात्र उद्देश्य हो जाता है. इसमें विजय सुनिश्चित होती है; क्योंकि इस तरह की सफलता के बीज हमारी सकारात्मकता से उत्पन्न होते हैं।
हमारी सकारात्मकता अथवा नकारात्मकता में ही सफलता और असफलता के बीज मौजूद होते हैं। सकारात्मकता हमारी सफलता को सुनिश्चित करती है और नकारात्मकता हमारी असफलता को सुनिश्चित कर देती है।सकारात्मकता की सबसे बड़ी खूबी यही है कि कठिन-से-कठिन परिस्थितियाँ भी हम पर हावी नहीं हो पातीं. अंतर्मन कभी संघर्षों-चुनौतियों- समस्याओं के समक्ष भयभीत नहीं होता-घबराता नहीं. किसी कार्य अथवा लक्ष्य में यदि असफलता मिल भी जाए तो सकारात्मक व्यक्ति के लिए यह असफलता भी एक ऐसी सीढ़ी या सोपान बन जाती है जो उसे और अधिक साहस और ऊर्जा से भर देती है।
सकारात्मकता की स्थिति में व्यक्ति, मार्ग की प्रत्येक अड़चनों-बाधाओं को अपनी शक्ति-सामर्थ्य और सफलता की प्राप्ति का माध्यम बना लेता है. विपरीतताओं-चुनौतियों से वह कभी डरता नहीं, वरन मजबूती से उनका सामना करता है. ऐसे में उसके व्यक्तित्व की सारी खूबियाँ धीरे-धीरे प्रकट होने लगती हैं।
जीवन की प्रकृति का एक सामान्य नियम यह है कि जब आप किसी चुनौती को स्वीकार करते हैं और उस पर विजय प्राप्त करते हैं तो उपहारस्वरूप एक नई क्षमता की उपलब्धि होती है. क्षमता और सामर्थ्य का अपरिमित भंडार तो सभी में अंतर्निहित होता है, परंतु एक सकारात्मक व्यक्ति के व्यक्तित्व में ही भीतर की क्षमताएँ और संभावनाएँ निखरकर आती हैं।
जीवन की प्रत्येक चुनौती, हरेक संघर्ष हमारी क्षमताओं-संभावनाओं को उभारने-निखारने का अवसर होता है, लेकिन इन अवसरों का लाभ व्यक्ति की सकारात्मक प्रवृत्ति से ही संभव हो पाता है. नकारात्मक व्यक्ति चुनौतियों-संघर्षों से भयभीत हो भाग खड़ा होता है, इसलिए उसके लिए व्यक्तित्व को क्षमतावान बनाने वाले अवसरों के दरवाजे सदैव बंद ही रहते हैं।
किसी व्यक्ति के जीवन में असफल हो जाने के पीछे का यही मूल कारण है. असफलता का तात्पर्य ही है कहीं-न-कहीं व्यक्तित्व की शक्ति-सामर्थ्य का अवरुद्ध हो जाना, क्षय हो जाना. यहाँ यह समझ लेना जरूरी है कि नकारात्मक चिंतन और नकारात्मक भावनाएँ हमारी क्षमताओं के विकास में भारी बाधाएँ पैदा करते हैं।
व्यक्ति स्वयं के प्रति एवं परिस्थितियों के प्रति जहाँ-जहाँ नकारात्मक होता है, वहीं-वहीं असफल भी होता है. सफलता का मार्ग इसके विपरीत होता है. सफलता का आकलन दो ही दृष्टि से किया जाता है, एक व्यक्तित्व विकास के रूप में और दूसरा उपलब्धियों के रूप में. जीवन में इन दोनों मानदंडों को पूरा करने की एकमात्र शर्त है व्यक्ति का हर दृष्टिकोण में सकारात्मक बने रहना ।
सकारात्मकता के कारण ही जीवन की प्रत्येक चुनौती, हर संघर्ष का परिणाम जीत होती है. हरेक प्रयास और पुरुषार्थ की दिशा सही होती है. व्यक्तित्व विकसित और क्षमतावान बनने लगता है. सकारात्मकता की नींव पर ऐसे अनगिनत चमत्कार जीवन के धरातल पर प्रकट होने लगते हैं. जीवन के सूक्ष्म विज्ञान को हमारे प्राचीन ऋषि-मुनि बखूबी समझते थे, इसलिए उन्होंने मनुष्य जीवन के प्रत्येक आयामों में सकारात्मकता बनाए रखने वाली प्रक्रियाओं-प्रेरणाओं को समाहित किया।
जप, तप, ध्यान, योग, स्वाध्याय, साधना, उपासना, भजन, कीर्तन जैसी अनेकों तकनीकों को दैनिक जीवनचर्या से जोड़कर ही हमारे ऋषियों ने आदर्श जीवनपद्धति का निर्माण किया. इसमें ऐसे जीवन सूत्र मौजूद हैं, जो व्यक्ति को कठिन-से-कठिन परिस्थितियों-चुनौतियों और संघर्षों के बीच भी सकारात्मक बनाए रखते हैं, परंतु दुर्भाग्य से मनुष्य ऐसी आदर्श जीवनपद्धति और जीवनसूत्रों को नजरअंदाज कर आधुनिक भोगवादी और भौतिकवादी जीवनशैली को अपनाकर स्वयं ही नकारात्मकता उत्पन्न करने वाले कारकों से जुड़ जाता है।
जीवन में सफलता और सुख, शांति, प्रसन्नता की प्राप्ति में सकारात्मकता की ही मुख्य भूमिका होती है और सकारात्मकता को सतत बनाए रखने के लिए एक खास जीवन-दृष्टि और जीवनपद्धति की. हमारी देव संस्कृति की विरासत में ये दोनों मौजूद हैं. आवश्यकता है सिर्फ इन्हें जीवन में उतारने और साकार करने की। स्वार्थ, अहं और भोग में लिप्त जीवन जल्द ही नकारात्मकता से भर जाता है और अंततः अनेकों समस्याओं व दुःखों का पर्याय बन जाता है।
नकारात्मकता से युक्त जीवन एक अभिशाप की तरह हो जाता है. ऐसे अभिशाप की स्थिति से बचने का उपाय यही है कि जीवन को सार्थक उद्देश्य और आदर्श जीवनपद्धति के अनुशासन में जिया जाए. सजगतापूर्वक स्वयं भी पड़ताल की जाए कि व्यक्तित्व के किसी भी स्तर पर, किसी भी रूप में नकारात्मकता तो नहीं पनप रही है? मनोभावों में हीन भावना, निराशा, ईर्ष्या, द्वेष, असंतुष्टि, भय, शंका, अपमानित समझना, तुलना करना, कमियाँ खोजते रहना, बुराई -निंदा की प्रवृत्ति जैसे अनेक लक्षण हैं, जिनसे भीतर की नकारात्मकता का पता चलता है. इससे बचने का सरलतम उपाय है जीवन में सकारात्मकता का अवलंबन करना।
मनःस्थिति ही परिस्थितियों का निर्माण करती है, अतः सर्वप्रथम मनःस्थिति को सकारात्मक बनाने का उपाय करना चाहिए. यह उपाय नियमित, उपासना, ध्यान, योग, जप, स्वाध्याय आदि किसी भी रूप में हो सकता है. स्वयं के प्रति जागरूकता बनाए रखने के लिए आत्मबोध और तत्त्वबोध की साधना सर्वोत्तम जीवन सूत्र हैं।
इसके साथ ही कुछ विशेष बातों का अभ्यास अपनी सकारात्मकता को स्थायित्व प्रदान करने में सहायक बनता है, जैसे- दूसरों को प्रोत्साहित करना, स्वयं व दूसरों की कमियों को स्वीकार करते हुए अच्छाइयों पर ध्यान केंद्रित करना, स्वयं को गलतियों के लिए माफ करना, किसी अन्य से अपनी तुलना न करना, अपनी सामर्थ्य एवं क्षमताओं पर विश्वास करना, नकारात्मक लोगों व परिवेश से दूरी बनाए रखना, व्यवहार एवं चिंतन में उदारता एवं सहिष्णुता को बनाए रखना, समस्याओं-चुनौतियों के समक्ष पूर्ण आत्मविश्वास के साथ खड़े रहना, दूसरों के सहयोग एवं सेवा के अवसर को सौभाग्य समझना, अपने निर्धारित कर्त्तव्यों के प्रति ईमानदार बने रहना, बोलने में सदैव सकारात्मक व अच्छे शब्दों का चयन करना, जीवन में घटने वाली अच्छी बातों-अनुभवों के लिए स्वयं और ईश्वर के प्रति आभार प्रकट करना आदि।
एक बात और जो हमें यहाँ समझ लेनी चाहिए, वह यह कि सकारात्मकता का होना एक अच्छे एवं आदर्श व्यक्तित्व की विशेषता है, परंतु यह कोई जादुई या चमत्कारिक क्षमता नहीं है कि इसके होने से जीवन में परेशानियों- कठिनाइयों, संघर्षों का आना बंद हो जाएगा और सारी परिस्थितियाँ एवं लोग हमारे अनुकूल हो जाएँगे. ऐसा कदापि नहीं होता. परेशानियाँ, चुनौतियाँ, संघर्ष सब कुछ जीवन के उतार- चढ़ाव के रूप में आते रहेंगे. बस, सकारात्मक बने रहने से यह होगा कि ये सब हमारी क्षमताओं और सामर्थ्य को बढ़ाने वाले अवसरों-सोपानों में परिवर्तित होते जाएँगे और जीवन निरंतर प्रखरता, उत्कृष्टता और सार्थकता की दिशा में आगे बढ़ता जाएगा।
Amit Sharma
Writer