Limits of Science:
विज्ञान पदार्थ जगत् को सच मानता है. इसके अध्ययन-अन्वेषण का आधार दृश्यमान पदार्थ है. यह विज्ञान की प्रगति का एक नमूना ही है कि चाँद पर घर बनाने की बात हो रही है, तो मंगल पर जीवन की संभावनाएँ तलाशी जा रही हैं. वहीं क्लोनिंग, टेस्ट ट्यूब बेबी, नैनो टेक्नोलॉजी और मशीनी मानव यानी रोबोट की परिकल्पना विज्ञान की शक्ति को दरसाने वाले चंद नायाब नमूने भर ही हैं, लेकिन आज भी कुछ ऐसी अनसुलझी गुत्थियाँ हैं, जिनका जवाब विज्ञान के पास भी नहीं है. आज हम आपको अवगत करा रहे हैं कुछ ऐसी बातों से, जो विज्ञान की समझ से भी परे हैं।
चिकित्सा की आंतरिक क्षमता -
चिकित्सा विज्ञान ने भले ही कल्पना में आने वाली बातों को हकीकत के साँचे में ढालकर लोगों को यह मानने के लिए बाध्य किया हो कि शब्दकोश में असंभव नामक शब्द नहीं है, लेकिन आज भी कुछ ऐसे सिद्धांत हैं, जिनके जवाब विज्ञान आज तक तलाश रहा है।
उदाहरण के तौर पर प्लेसिबो इफेक्ट. इसके तहत किसी व्यक्ति को तमाम तरह की दवाएँ दी गईं, पर साथ ही उसकी आंतरिक क्षमताओं के आधार पर इलाज करने पर पाया गया कि शरीर को स्वयं को स्वस्थ करने की उसकी क्षमता आधुनिक चिकित्सा के मुकाबले लाख गुना बेहतर थी।
मनोवैज्ञानिक शक्ति -
मनोवैज्ञानिक शक्ति और छठी ज्ञानेन्द्रिय की परिकल्पना विज्ञानं आज तक सुलझा नहीं पाया है. कुछ लोग मानते हैं कि अंतर्ज्ञान ऐसी मनोवैज्ञानिक शक्ति है, जो किसी चीज के बारे में पहले आभास होने की शक्ति प्रदान करता है इसको किसी सिद्धांत का नाम नहीं दिया जा सकता. वैज्ञानिकों ने जब इस बात को जाँचने की कोशिश की तो जो परिणाम आए वे नकारात्मक थे. कुछ शोधकर्त्ताओं ने तर्क दिए कि मनोवैज्ञानिक शक्ति को मापा नहीं जा सकता. विज्ञान ने इसे टेलीपैथी नाम दिया, लेकिन इसके बारे में कोई वैज्ञानिक सिद्धांत या परिकल्पना आज तक नहीं दे सका है।
मृत्यु अनुभव और उसके बाद की जिंदगी –
जिंदगी का शाश्वत सत्य है - मृत्यु. इस संसार में जन्म लिया है जो मृत्यु तो होगी ही. शायद यह एक ऐसी बात है, जहाँ आकर विज्ञान पूरी तरह से असफल हो जाता है. इस दिशा में की गई शोधों में अनपेक्षित अनुभव निकलकर आए हैं. मृत्यु के बाद पुनः जीवित हो उठने वालों में से कुछ को मृत्यु के बाद ऐसा लगा कि जैसे वे किसी गुफा में चले जा रहे हों, उसमें प्रकाश-सा आ रहा हो, एक तरह की शांति का एहसास उन्हें हुआ, पर इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं बताया जा सका।
अनभिज्ञात आकाशीय पिंड –
इस बात में कोई संदेह नहीं है कि ऐसे आकाशीय पदार्थ मनोवैज्ञानिक शक्ति-मनोवैज्ञानिक शक्ति होते हैं, जिन्हें पहचाना नहीं जा सकता. लोग और छठी ज्ञानेंद्रिय की परिकल्पना विज्ञान आज इन्हें आकाश में देख तो सकते हैं, लेकिन इनकी पहचान आज तक संभव नहीं हो पाई है. इसको लेकर कई परिकल्पनाएँ दी गई और तर्क प्रस्तुत किए गए. किसी ने इसे दूसरे ग्रह का स्पेसक्राफ्ट कहा, तो किसी ने इन्हें उड़नतश्तरी या हवाई एयरक्राफ्ट कहा तो कुछ ने आकाशीय छल कहा. वैज्ञानिकों ने शोध के द्वारा कुछ यूएफओ (अनआइडेंटीफाइड फ्लाइंग ऑब्जेक्ट) को पहचानने की कोशिश की, पर कुछ आज भी वैज्ञानिकों के लिए रहस्य बने हुए हैं. वहीं आकाशीय पिंडों से जुड़ी कुछ घटनाओं की गुत्थी रहस्य ही बनी हुई है ।
डेजा वू (पूर्वानुभव) -
डेजा वू एक फ्रेंच वाक्यांश है, जिसका मतलब होता है पहले से देखा हुआ. जिंदगी में कई लोगों के साथ कुछ चीजों और जगहों को देखने पर ऐसा लगता है कि जैसे पहले से वे उस जगह को जानते हों, उस जगह से उनका कोई नाता हो।
उदाहरण के तौर पर किसी व्यक्ति का किसी नए स्थान पर जाकर ऐसा महसूस करना कि जैसे पहले से ही वह इस स्थान से पूरी तरह परिचित है. अंतर्ज्ञान के ऊपर वैज्ञानिकों द्वारा किए गए कई शोधों में इसमें शोध करने की कोशिश की गई तो परिणामों में तमाम तरह की भिन्नता और उनके प्राकृतिक होने की बात सामने आई, पर यह बात भी महज विज्ञान का रहस्य ही बनकर रह गई।
भूत -
लोग इसे अंधविश्वास का नाम देते हैं, तो कई इसे आत्मा का मुक्त न हो पाना मानते हैं. इनसे जुड़ी कहानियाँ, किस्से सुनकर हमारा बचपन पला-बढ़ा है. एक छायादार शरीर, जिसका मात्र एहसास है, लेकिन प्रमाण नहीं।
आभास -
इसका संबंध छठी ज्ञानेंद्रिय से है. इस बात पर कई कथानक और फिल्में बनाई जा चुकी हैं. लोग इंद्रिय की इस शक्ति को मानते हैं. वहीं विज्ञान मनुष्य के पास इस विशेष क्षमता के होने की बात से इनकार भी नहीं करता. विज्ञान कहता है कि कुछ बातों का आभास मनुष्य को पहले हो जाता है, लेकिन शरीर की इस अद्भुत शक्ति के बारे में विज्ञान के पास आज तक कोई सशक्त उत्तर नहीं है।
बिगफुट -
लंबे, बड़े बालों वाली मानव सदृश एक आकृति जिसके बारे में वैज्ञानिकों के बीच आज भी बहस जारी है. कुछ इसकी उपस्थिति को पूरी तरह नकारते हैं, तो कुछ इसके होने को स्वीकारते हैं।
यह मुख्यतः अमेरिका के सुदूर जंगलों में पाए जाते हैं. पूरे विश्व में इन्हें अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है तिब्बत और नेपाल में इन्हें येती के नाम से पुकारते हैं तो ऑस्ट्रेलिया में योवी के नाम से. ऐसा माना जाता है कि हजारों की संख्या में बिगफुट होते हैं, लेकिन आज तक इनके शरीर का अवशेष जंगलों में नहीं मिल सका है. वहीं विज्ञान इनके न होने की बात आज तक प्रमाणित नहीं कर सका है. विज्ञान के लिए इनके होने की पुष्टि करना या न करना बहुत बड़ी समस्या है।
द टाओस हम -
मैक्सिको के एक छोटे से शहर या टाओस में लोगों ने एक ऐसी अजीब भिनभिनाहट सुनी, जो लोगों को आज तक सोने नहीं देती. सन् 1977 में ब्रिटेन के एक अखबार में इससे जुड़े 800 पत्र आए, जिसमें लोगों की तरफ से इस भिनभिनाहट की शिकायत आई. लोगों ने शिकायत दर्ज की कि इसकी वजह से वे सो नहीं पाते, उन्हें घबराहट रहती है, साँस की तकलीफ हो गई है, न तो वे लिख पाते हैं और न ही पढ़ पाते हैं।
सन् 1993 में मैक्सिको के साथ मिलकर उत्तरी अमेरिका ने इस ध्वनि के स्रोत का पता लगाने की शुरुआत की. कुछ वैज्ञानिकों ने तर्क दिया कि वे विद्युत चुंबकीय तरंगें हैं, तो कुछ ने कहा कि यह ध्वनियों का आपस में टकराव है, लेकिन इसके स्रोत के बारे में आज तक पता नहीं लगाया जा सका है।
रहस्यपूर्ण गुमशुदगी -
लोगों का अचानक गुम होना आज भी विज्ञान के लिए एक रोचक पहेली है. वे लोग कहाँ चले जाते हैं. अगर किसी दुर्घटना के शिकार हो जाते हैं तो ऐसे में फॉरेंसिक साइंस के लिए यह जान पाना संभव होता, परंतु फॉरेंसिक साइंस के पास भी लोगों के अदृश्य होने वाली घटनाओं का कोई जवाब नहीं है. उनकी खोज के लिए एकमत वाला कोई सिद्धांत आज तक दिया नहीं जा सका है. इन घटनाओं को यहाँ लिखने का तात्पर्य यही है कि प्रकृति केवल दृश्य नहीं है, बल्कि यह अदृश्य भी है. यह कहना सही होगा कि अदृश्य ही दृश्य सत्ता को नियमित एवं नियंत्रित करती है।
ऐसे में विज्ञान के पास इसका कोई जवाब नहीं है. विज्ञान को अपनी सीमा से एक कदम आगे बढ़ना होगा, ताकि इन अनुत्तरित प्रश्नों के उत्तर ढूँढ़े जा सकें।
Amit Sharma
Writer