krishna-meera-bai -कृष्ण प्रेमी मीरां बाई (भगत और भगवान के मिलन की पवित्र गाथा)        

मीरां कौन थी ?  मीरां का कृष्ण से क्या नाता था  ? मीरां का जीवन कैसे बीता । मीरां के साथ कोन-कोन सी घटनाएँ हुई । मीरा का आध्यात्मिक गुरु कौन था ?  अंत में मीरां का क्या हुआ ? 
          ( कलयुग की सच्ची घटना )
           भगत और भगवान के मिलन की पवित्र गाथा                                                                                     
          जीवन परिचय - मीरां  का जन्म राजस्थान के मारवाड़ जिले के गांव कुड़की में  सन 1498 में राज परिवार में हुआ था।  उनके पिता का नाम रतन सिंह राठौड़ था और माता का नाम वीर कंवर था । उनके पिता मेड़ता के शासक थे । वह एक वीर योद्धा थे।  रतन सिंह राठौड़ कि एक ही संतान थी, वह मीरां के रूप में थी और मीरां जब बहुत छोटी थी तब मीरां की माता का निधन हो गया था।  उनका लालन-पालन उनके दादा जी राव दूदाजी की देखरेख में हुआ था । 
            रावजी बड़े ही आध्यात्मिक स्वभाव के थे।  उनके दरबार के अंदर संतों का आना-जाना अक्सर रहता था और उनके घर पर संत आया जाया करते थे। सन 1498 में जब यह समय चल रहा था, उस वक्त जाति पाती का बहुत ज्यादा बोलबाला था।  छोटी जाति, ऊंची जाति का बहुत ज्यादा ख्याल रखा जाता था। कहते हैं की एक दिन राज महल के सामने से एक बारात निकली, तब मीरां बहुत ही छोटी थी दूल्हा बहुत ही आकर्षक वस्त्र पहने हुए था । जब भी बारात निकलती है तो उत्सुकता वश सभी उस बारात को अनायास देखते ज़रूर हैं। उस वक्त मीरां भी अपने दादाजी के साथ उस बारात को देख रही थी, तो उसने अपने दादाजी से पूछा कि यह कौन है, तो उसके दादाजी ने बताया यह दूल्हा है।  तो उसने  दादा जी से कहा मुझे भी ऐसा दूल्हा  चाहिए । उसको तो उस बारे में कुछ पता नहीं था बहुत छोटी अवस्था थी।  तो उसने वहां पर बहुत जिद की कि मुझे ऐसा ही सुंदर दूल्हा चाहिए।  फिर दादा जी उसको समझा बुझा कर  घर ले आए और रात बीत गई ।  सुबह-सुबह  बच्चों वाली जिद मुझे तो वही दूल्हा चाहिए तो, उसके दादाजी ने बाजार से जाकर के एक सुंदर कृष्ण की मूर्ति लाकर उसको दे दी और कहा कि यही तुम्हारा दूल्हा है ।  उत्सुकता वश  उस कृष्ण की मूर्ति की ओर देख इतनी अभिभूत हो गई और उसने अपने दिल में धर लिया कि यही मेरा दूल्हा है । उसको सजा सजाकर मंदिर में रखती।  उसके वस्त्र बदला करती, उसको भोग लगवाती, उससे प्रेम करने लगी। ऐसा प्रगाढ़  प्रेम उसको उस कृष्ण की मूर्ति से हो गया कि उसके बाद उसका ख्याल किसी और की तरफ गया ही नहीं । उसे कृष्ण की सेवा करते हुए  कुछ समय हो गया था। उसकी माता का निधन जल्दी हो गया था ।  दादाजी ने यह सोचा कि इसकी जल्द से जल्द शादी कर दी जाए ।
              उन्होंने उदयपुर के राजा भोजराज जो मेवाड़ के राणा सांगा के पुत्र थे ,के साथ विवाह करने की तैयारी शुरू कर दी ।
           जब मीरां को यह पता लगा कि उसकी शादी होने वाली है, तो उसने तुरंत यही कहा कि मेरी शादी तो श्री कृष्ण के साथ हो चुकी है।  क्योंकि आपने मुझे  दूल्हा ला कर दिया था मैं तो उसकी दुल्हन ही हूँ।  बड़ा  विचार विमर्श भी चला लेकिन उन्होंने फिर यही सोचा कि यह बच्ची है, अभी इसको इन बातों कोई  पता नहीं। इसकी जबरदस्ती राजा उदयपुर के राजा भोजराज के साथ  शादी कर दी गई ।
शादी होने के बाद जब अपने ससुराल आई तो ससुराल में सब ने स्वागत करके उसको शयन कक्ष भी दे दिया और शयन कक्ष में जाने के बाद राजा भोजराज भी उसके पास गए और उन्होंने अपने संबंधों की बात की आज से तुम मेरी पत्नी हो और मैं तुम्हारा पति हूँ।  तो इस वक्त मीरां  ने यह बात कह दी कि मेरी तो श्री कृष्ण से शादी हो चुकी है ।  इसलिए मैं और किसी से शादी नहीं करूंगी तो राजा भोजराज ने सोचा की महारानी है। राजा के  खान दान से आई है तो यह मजाक कर रही है, लेकिन यह मजाक कितने दिनों तक चलता । 
              अब जब राजा ने बार-बार उसको कहा कि हमारी शादी हो चुकी है ,लेकिन मीरां इस बात से राजी नहीं थी।  उसने यही कहा कि मेरी शादी तो श्री कृष्ण से हो चुकी है।  लेकिन कितने दिनों तक यह बातचीत  रहती ।
              आखिर उसने अपनी बहन उदा भाई को कहा कि मीराबाई कह रही है कि मेरी शादी तो श्री कृष्ण से हो चुकी है तो उसकी बहन  ने भी मीरां से वाद-विवाद किया लेकिन किसी बात का कोई उत्तर नहीं मिला सिर्फ एक ही रटा रटाया जवाब मिला की मेरी शादी तो श्री कृष्ण से हो चुकी है ।
               उदा ने मीरा को समझाने ने की लाख कोशिश की लोक लाज की चिंता करो।  इस तरह की बहुत सी बातें उसने की लेकिन उसका कोई असर नहीं निकला। 

    भोजराज भी मेवाड़ के राजा थे।  यह बात अपने पिताजी को बताई लेकिन उन बातों का मीरा पर कोई असर नहीं हुआ। मेवाड़ में मीरां का श्री कृष्ण के लिए नृत्य बहुत मशहूर था । मीरा श्री कृष्ण के लिए नृत्य करती है, तो ऐसा नृत्य करती है कि अपनी सुध-बुद्ध को खो देती थी  । ऐसा राजा भोज को भी पता था।  फिर एक दिन राजा भोज मीरां को अपने समक्ष नृत्य के लिए मनाते हैं और यह शर्त रखते हैं कि मीरां अगर मैं आपके नृत्य से खुश हुआ तो जो आप मांगोगे मैं आपको दूँगा।  आज तक मीरां  ने सिर्फ श्री कृष्ण के लिए ही नृत्य किया था।  बहुत ही सोच-विचार करने के बाद मीरां अपने पति भोजराज के सामने इतना अच्छा नृत्य करती है, कि उसकी आंखें झरने के समान बह उठती है और यह सोचकर नृत्य करती है कि जैसे श्री कृष्ण के सामने नृत्य कर रही हो। इस नृत्य से राजा भोजराज बहुत ही खुश होते हैं  और शर्त के अनुसार मीरां को कहते हैं कि मांगो क्या मांगती हो, तो मीरां यह कहती हैं  कि आप चाहो तो दूसरी शादी कर लो ।  लेकिन मुझे शादी के भार से मुक्त कर दो उस वक्त राजा भोज वचन दे देते हैं कि आज के बाद हमारा रिश्ता पति-पत्नी का नहीं होगा । 
           

meera bai