Keep Reading Practice Alive:
हर व्यक्ति बचपन से ही पढ़ना-लिखना प्रारंभ करता है और यह तब तक जारी रहता है, जब तक कि उसकी शैक्षणिक जिम्मेदारियाँ पूर्ण नहीं हो जातीं, लेकिन जैसे ही पढ़ाई पूरी होती है, नौकरी मिलती है, तो सबसे पहले वह अपनी पढ़ने की आदत छोड़ देता है, जो उसने बचपन से डाली थी और इस तरह किताबों से जो दोस्ती उसकी बचपन से थी, वह टूट जाती है जबकि किताबों का संग, उन्हें पढ़ने की आदत हमारे लिए बहुत हितकारी होती है, ये हमारे व्यक्तित्व को निखारने में सहायक होती हैं।
बचपन से लेकर बड़े होने तक जो भी पढ़ा जाता है, वह पाठ्यक्रम के दायरे तक सीमित होता है, लेकिन पाठ्यक्रम के बाहर भी यदि पढ़ने का अभ्यास कर लिया जाए, तो जीवन से संबंधित अन्य बातों का ज्ञान हो सकता है. प्रसिद्ध साहित्यकार फ्रेंज काफ्का का कहना है कि- अच्छी पुस्तकें कुल्हाड़े की तरह अपने अंदर के बरफ के दरिया को तोड़ देने की क्षमता रखती हैं.' हम तो यह समझते हैं कि हमने बहुत पढ़ लिया, लेकिन जिस तरह से हम रोजाना घर की सफाई करने के लिए झाड़ लगाते हैं, वैसे ही मन के ऊपर रोज जमती धूल को झाड़ने के लिए अध्ययन के क्रम में एक निरंतरता की आवश्यकता है।
लोग यह कह सकते हैं कि हमारे पास समय कहाँ है? लेकिन यह सबसे बड़ा बहाना है; क्योंकि एक सर्वेक्षण में यह पाया गया कि अधिकांश घरों में सप्ताह भर में 35 से 45 घंटे टीवी चलता है. यह समय हमारे काम के समय से कुछ ही कम है. यदि पढ़ने के लिए समय नहीं है तो फिर टीवी देखने के लिए समय कहाँ से मिल पाता है? सच तो यह है कि हमें जो भी करना होता है, उसके लिए हम समय निकाल ही लेते हैं और जो कार्य नहीं करना, उसके लिए समय का बहाना बना देते हैं।
प्रसिद्ध लेखक ब्लादीमीर नबोकोव के अनुसार- 'आप समय को लेकर परेशान न हों. बस, केवल पढ़ते जाएँ, इससे बेहतर तरीके से आप समय का कहीं और उपयोग नहीं कर सकते.' दरअसल हमें स्कूल में डाली गई पढ़ने की आदत को हमेशा के लिए बरकरार रखना चाहिए. अगर यह आदत छूट गई हो, तो कोई बात नहीं, फिर से शुरू कर देना चाहिए. जैसे-शुरू में एक महीने में एक किताब पढ़ने का लक्ष्य बनाया जा सकता है। धीरे-धीरे एक सप्ताह में एक किताब पढ़ सकें तो और भी अच्छा।
पढ़ने के इस क्रम में व्यक्ति खुद ही यह महसूस करेगा कि वह अपने व्यक्तित्व की श्रेष्ठता के द्वार खोल रहा है. देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं० जवाहर लाल नेहरू के अनुसार- 'जो पुस्तकें सबसे अधिक सोचने पर मजबूर करती हैं, वही तुम्हारी सबसे बड़ी सहायक हैं. जिसे आप पुस्तक कहते हैं, वह कागज की सूखी, निष्प्राण चीज नहीं है, बल्कि पुस्तकें जीते-जागते जीवन की हलचल हैं. पुस्तकों के प्रत्येक शब्द में अनुभव की अमरता छिपी है, जीवन-पथ की कठिनाइयों के हल हैं, सघन वृक्ष की शीतलता है, अमिट विश्वास और सतेज प्राण भी उनमें समाहित हैं.' सच तो यह है कि जो ज्ञान हम वर्षों की मेहनत से प्राप्त करते हैं, वह पुस्तकों के माध्यम से हमें अल्प अवधि में प्राप्त हो जाता है।
पुस्तक के संदर्भ में कवि मिल्टन के शब्द स्मरण योग्य हैं, उन्होंने कहा था कि- 'एक श्रेष्ठ पुस्तक एक महान आत्मा की बहुमूल्य विरासत है, जिसमें उसके जीवन के श्रेष्ठतम अनुभवों का सार उपलब्ध है.' ऋषि तिरुवल्लुवर के शब्दों में- 'पुस्तकें सुगंधित पुष्पों के समान हैं. वे जहाँ जाती हैं, अपने साथ मधुर सुगंध का आनंद ले जाती हैं. उनका सभी जगह घर है और सभी देश उनके लिए स्वदेश हैं.' यह संभव है कि व्यक्ति का मित्र उसका साथ छोड़कर चला जाए, लेकिन पुस्तकों से अर्जित ज्ञान सदैव उसके साथ रहता है और समयानुसार काम भी आता है. यदि पुस्तकों का स्वाध्याय किया जाए और उनसे प्राप्त ज्ञान को जीवन में उतारा जाए, तो जीवन की अनेक विसंगतियों से सहज ही बचा जा सकता है।
पुस्तकें हमारी विचारधारा को एक नया आयाम प्रदान करती हैं और हमें कुछ महत्त्वपूर्ण सोचने के लिए मजबूर भी करती हैं। व्यक्ति चाहे कितने भी तनाव, चिंता, अवसाद से घिरा हो परंतु प्रेरणादायी पुस्तकें पढ़ने से उसे सदा अपनी परेशानियों से उबरने में सहायता मिलती है और उसकी मानसिक परेशानियाँ भी कम होती हैं। अच्छी पुस्तकें व्यक्ति को श्रेष्ठ कार्यों को करने के लिए प्रोत्साहित करती हैं और उसका दिशा-निर्देशन करती हैं।
पुस्तकों में अनेक विषय होते हैं। हम जिस दिशा में भी आगे बढ़ना चाहते हैं, उस विषय की पुस्तकों को पढ़कर उचित जानकारी एकत्रित कर सकते हैं और उपयुक्त ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। हालाँकि पुस्तकों में जो बातें लिखी जाती हैं, वो दूसरों के अनुभवों पर आधारित होती हैं, इसलिए वो हमारा अनुभव नहीं बन सकती हैं, लेकिन हमारा मार्गदर्शन अवश्य कर सकती हैं। युगऋषि परमपूज्य गुरुदेव के अनुसार- 'अच्छी पुस्तकें जीवंत देव प्रतिमाएँ हैं, उनकी आराधना से तत्काल प्रकाश और उल्लास मिलता है।'
पढ़ने की प्रक्रिया हमें स्वस्थ भी रखने में सहायक है; क्योंकि इस दौरान हमारा पूरा शरीर क्रियाशील हो उठता है। सभी इंद्रियाँ सक्रिय हो उठती हैं। इस तरह उम्र चाहे जो भी हो, अध्ययन की आदत मनुष्य को स्वस्थ जीवन देती है। साठ वर्ष की उम्र या इससे अधिक उम्र के बुजुर्गों के लिए बने कार्यक्रम के अध्यक्ष एल्डर का कहना है कि-'आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते कि अध्ययन बुजुर्गों के लिए कितनी चमत्कारी औषधि साबित हुआ है।' बुजुर्गों में यदि देखने, सुनने व अनुभव करने की क्षमता है तो वे जो भी अध्ययन से सीखते हैं, उसका मूल्यांकन भी करते रहते हैं, जिससे उन्हें क्रियाशील होने की आदत पड़ जाती है।
मनोचिकित्सक डब्ल्यू वैरन वुल्फ के अनुसार “अपने आप को मायूस और बेकार समझते रहने की मानसिकता से मुक्त रहने का सबसे उत्तम उपाय है की मस्तिष्क को सक्रीय बनाये रखा जाये।” पड़ते रहने से ये सक्रियता बरकरार रहती है , हालाँकि टीवी व वीडियो देखकर भी मस्तिष्क को सक्रीय रखा जा सकता है लेकिन ज्यादा देर तक टीवी या वीडियो देखन से मस्तिष्क पर, आँखों पर दबाव पड़ता है; जबकि पढ़ने की प्रक्रिया में यह दबाव अपेक्षाकृत कम होता है।
मनोचिकित्सकों का यह मानना है कि तेजी से हो रहे परिवर्तनों के साथ कदम मिलाकर चलने का सबसे बढ़िया उपाय है-अध्ययन। इसलिए आजीवन अध्ययन करते रहना श्रेयस्कर ही नहीं, अनिवार्य भी है। अध्ययन एक तरह का मानसिक व्यायाम है और उम्र बढ़ने के बाद भी व्यक्ति नियमित अध्ययन के द्वारा अपना मानसिक स्वास्थ्य सुरक्षित रख सकता है।
विचारों में यदि क्रांति करनी है, तो श्रेष्ठ विचारों में रमण करना जरूरी है और उन्हें अपनाना भी जरूरी है। पढ़ने की प्रक्रिया में चिंतन-मनन बहुत जरूरी है, अन्यथा पढ़ा हुआ ज्ञान भी किसी काम का नहीं रहता। इसलिए युगऋषि परमपूज्य गुरुदेव ने पढ़ने को स्वाध्याय की प्रक्रिया से जोड़ा और इसमें चिंतन, मनन को सबसे महत्त्वपूर्ण माना, ताकि जो पढ़ा जाए, उस पर चिंतन और मनन भी किया जाए और इस प्रकार वह ज्ञान हमारे जीवन का अंग बन सके। जिस तरह भोजन खाकर पचाया जाता है, उसी तरह पढ़ने से हुआ ज्ञान भी जब तक पचाया नहीं जाता, तब तक वह हमारे काम नहीं आता। पढ़ने के लिए अच्छा साहित्य चाहिए, जिसमें अच्छे विचार हों, इसलिए युगऋषि ने ऐसा युगसाहित्य रचा, जिसमें समकालीन सभी विषय निहित हैं और मनुष्य का दिशानिर्देशन करने में सहायक हैं।
Amit Sharma
Writer