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Keypoints:
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हड़बड़ी और धैर्य में क्या अंतर है?
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हड़बड़ी से काम बनते है या बिगड़ते है.
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जीवन में धैर्य रखना कितना जरुरी है?
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धैर्य रखने के असली मायने क्या है?
आगे बात करेंगे....

हड़बड़ी और धैर्य में क्या अंतर है?
हड़बड़ी से काम बनते है या बिगड़ते है.
जीवन में धैर्य रखना कितना जरुरी है?
धैर्य रखने के असली मायने क्या है?
आगे बात करेंगे....
धैर्यवान होना एक अच्छा गुण है, लेकिन धैर्य रख पाना सबके लिए संभव नहीं हो पाता है. धैर्य, प्रतीक्षा करने की कला है। जो सीमा धैर्य की होती है, वही हमारी उम्मीदों की भी होती है। हम सभी जानते हैं कि कार्य करने की अलग गति होती है और उसका परिणाम पाने की अलग, लेकिन इनके मध्य धैर्य की समय सीमा होती है, जिसे पार करना पड़ता है और इस समय सीमा में होती हैं-उम्मीदें, बेचैनी, झुंझलाहट, जिन्हें धैर्य के साथ सहना होता है। व्यक्ति जब किसी कार्य को हड़बड़ी में करने का प्रयत्न करता है तो वह सत्य एवं वास्तविकता को अनुभव नहीं कर पाता है और बेचैनी में किए गए कार्यों के कारण कई बार उसे निराशा का भी सामना करना पड़ता है। इस दौरान वह ऐसी बातें बोल बैठता है, जो उसे नहीं बोलना चाहिए और ऐसे कार्य भी कर बैठता है, जो उसे नहीं करने चाहिए। यदि व्यक्ति बेकार में हड़बड़ाहट करता है, धैर्य से काम नहीं लेता है तो वह अपने 10 मिनट के कार्य को घंटों के कार्य में बदल देता है. हड़बड़ाहट में कार्य बिगड़ने लगते हैं और फिर उन्हें सुधारने में समय लगता है। धैर्य न धारण कर पाने के कारण कई बार व्यक्ति के कदम गलत दिशा में मुड़ जाते हैं। ऐसा अक्सर होता है कि हमारा धीरज तब जवाब दे जाता है, जब उसकी हमें सबसे अधिक जरूरत होती है. धैर्य की कमी के कारण ही व्यक्ति के अंदर हड़बड़ाहट होती है। ऐसा कहते हैं कि गड़बड़ी की शुरुआत हड़बड़ी से होती है. व्यक्ति जैसे ही धैर्य खोता है, वह एक तरह 3 से सफलता की संभावना को नकार बैठता है। द्वितीय विश्वयुद्ध के समय अमेरिकी एयर फोर्स के चीफ रह चुके हेनरी. एच. अर्नोल्ड के अनुसार- 'कोई भी मुरगी अंडे से चूजा पाने के लिए उसे तोड़ती नहीं है, बल्कि उसे सेती है अर्थात सफलता पाने के लिए मनुष्य को हड़बड़ी न करते हुए धैर्यपूर्वक अपने प्रयासों को करते रहना चाहिए। कुछ लोग यह सोचते हैं कि धैर्य का मतलब- धीमा कार्य करना होता है. सत्य ऐसा नहीं है। संसार के प्रमुख धनवानों में शामिल वॉरेन बफेट के अनुसार- 'जो भी आपको अपने से जितना ज्यादा आगे दिख रहा है, वह उसी अनुपात में आपसे ज्यादा धैर्यवान है।' जीवन में चाहे किसी भी तरह की परेशानी हो, उसे आसानी से पार किया जा सकता है, बशर्ते व्यक्ति में हड़बड़ी न हो और वह ठहरकर परिस्थितियों पर चिंतन कर सकता हो। यह सच है कि धीरज के साथ किए गए कार्य सफलता की गारंटी नहीं देते, लेकिन इस बात की गारंटी जरूर देते हैं कि असफलता से पार पाने के दूसरे रास्ते उपलब्ध हो जाएँ। धैर्य के साथ व्यक्ति यदि जीवन जिए तो वह भौतिक प्रगति के साथ-साथ आध्यात्मिक उन्नति भी करता है. धैर्य व्यक्ति की हर अंतहीन इच्छा को दिशा देने के साथ-साथ एक जीवनोद्देश्य भी दे सकता है. अगर व्यक्ति में धैर्य है तो वह 100 में से 100 नंबर का हकदार होता है और अगर धैर्य नहीं है तो वह शून्य के पायदान पर स्वयं को खड़ा पाता है. इतनी अनमोल विरासत है-धैर्य की । धैर्य रखना केवल एक अच्छा गुण ही नहीं है, बल्कि यह एक कौशल भी है। धैर्य को इंग्लिश में 'पेशेन्स' कहते हैं, जिसका अर्थ है- बिना आपा या आस खोए, देरी, मुसीबत और झुंझलाहट के क्षणों को स्वीकारने या सहने की क्षमता. हमें हर उस क्षण में धैर्य रखने की जरूरत है, जब परिस्थितियाँ हमारे मनमुताबिक नहीं हो रही होतीं. प्रसिद्ध लेखिका जॉइस मेयर का कहना है कि 'धैर्य इंतजार करने की क्षमता मात्र नहीं है, बल्कि इस दौरान हम कैसा व्यवहार करते हुए इंतजार करते हैं, यह भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है।' वर्तमान में नई तकनीकों ने हमारे कार्यों की गति बढ़ा दी है, इसके साथ ही तुरंत परिणाम प्राप्त करने का चस्का भी तेजी से बढ़ा है, लेकिन जब हम अपने हिस्से का कार्य कर लेते हैं तो उसके बाद भी हमें उसका परिणाम पाने के लिए इंतजार करना पड़ता है. मोटिवेशनल स्पीकर रॉबिन शर्मा के अनुसार- 'धैर्य एक कुशलता है, जो व्यक्ति को सीखनी पड़ती है और जो व्यक्ति इसका जितना अभ्यास करता है, उतना ही वह जीवन में आगे बढ़ जाता है।' धैर्य में हमें उचित समय की प्रतीक्षा करनी पड़ती है, लेकिन यह जरूरी नहीं कि प्रतीक्षा के समय कुछ कार्य न किए जाएँ. यदि प्रतीक्षा का समय यों ही गँवाया जाएगा तो व्यर्थ समय गुजरने के कारण बेचैनी व झुंझलाहट का होना स्वाभाविक ह.। इसलिए प्रतीक्षा की अवधि में भी हमें स्वयं को किसी-न-किसी कार्य में लगाना चाहिए और उस समय का सदुपयोग करना चाहिए. महान वैज्ञानिक एडिसन को बल्ब की खोज करने में तीन साल लगे, लेकिन इस बीच उनके साथी इतने लंबे समय तक उनके साथ नहीं रहे और बीच में ही उन्हें छोड़कर चले गए. वे जब-जब अपने प्रयोगों में असफल होते, उनके साथी उन्हें पीछे हटने के लिए कहते. प्रयास करते-करते एक रात्रि वे किसी समय सही तार तक पहुँच गए, और बल्ब जल गया. जलते हुए बल्ब की रोशनी उनके तीन साल के धैर्य और विश्वास का प्रतिफल थी। कभी-कभी शरीर में बहुत दर्द होता है, लेकिन जिंदगी में कुछ अच्छा होने की आशा, उस दर्द को झेलने की ताकत प्रदान करती है। अतः धैर्य खाली बैठने का नाम नहीं है. इसलिए धैर्य के अवसर पर व्यक्ति को वे सब कार्य यथावत् करते रहने चाहिए, जिन्हें वह कर सकता है और इससे प्रतीक्षा की अवधि भी सहजता से गुजर जाती है. धैर्य व्यक्ति को वह सब कुछ प्रदान करता है, जिसका वह सही मायनों में हकदार है. अतः व्यक्ति को धैर्य धारण करना चाहिए।
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