�Chanels V/S OTT�, the golden memories

                   Chanels V/S OTT 

 

एक ज़माना वो भी याद कीजिये क्या ज़माना था क्या माहौल हुआ करता था अपने अपने घरों में लगभग सन 1978 की बात होगी जब दूरदर्शन का पदार्पण हमारे घर में हुआ. बॉक्स और शटर वाले टेलीविज़न घर घर में स्थापित होने लगे ऊपर एंटीना लगाना पड़ता था छत क़े ऊपर फिर उसका डायरेक्शन सेट करना पड़ता था तब नीचे खड़ा घर का सदस्य अपनी सहमति व्यक्त करता था तो नीचे आना पड़ता था.

सुबह और शाम का समय होता था देखने का जिसमे फिक्स चैनल हो प्रसारित होते थे जैसे क़ृषि दर्शन समाचार और सप्ताह में एक पारिवारिक फ़िल्म का आना जिसका सभी को बेसब्री से इंतेज़ार जिनके घरों में टेलीविज़न नहीं होता था वो दूसरे क़े घरों में देखते थे उन सबके लिए बैठने की व्यवस्था सबको सोफा कुर्सी पर बैठाओ और खुद खड़े होकर या नीचे बैठकर देखो लेकिन मन में सुकून होता था चाय नाश्ते का दौर भी चलता रहता था.

फिर धीरे धीरे दूरदर्शन में नये नये परिवर्तन देखने को मिले सन 1982 ASIAD गेम्स होने थे तब देश की प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी ने कलर tv ज़ो पहले ब्लैक and white था कलर tv आने क़े बाद टीवी देखने का रूप रंग ही बदल गया तब तक सब कुछ सही था पर जैसे ही इंटरनेट आया दुनिया ही बदल गयी पहले ज़ो कण्ट्रोल में होता था मनोरंजन पर आज जैसे खाने क़े लिए आपके सामने रख दो उसमे से चुनना बहुत मुश्किल होता है क्या खाया जाये यही स्थिति आज इतने सारे चैनल इतने OTT समझ में नहीं क्या देखे किसे छोड़े तो ये अब अंत है अंतहीन है इससे मोह भाँग होने लगा है कोई मोबाइल में और कोई टीवी में सिमट गया है.

 

इसलिए जितना हो अपने लिए अपने परिवार अपने स्वास्थ्य क़े लिए समय निकाले इसी में आनंद है ये सब मनोरंजन भ्रम है हमें किस दिशा कि ओर ले जाए कुछ नहीं पता तो अपने आप सुरक्षित अपने मन विवेक पर नियंत्रण रखें अपना जीवन है अपने हिसाब से जियें. किसी ने क्या खूब कहा है:-

 

तू कर ले हिसाब अपने हिसाब से

ऊपरवाला भी करेगा हिसाब अपने हिसाब से

जय हिन्द जय भारत

Sanjay kalla