Chandrayaan 3: How to make a safe landing on the Moon -
Keypoints:
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चंद्रयान 3 का मून पर सॉफ्ट लैंडिंग का पूरा प्रोसेस.
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चंद्रयान 3 क्या सफल होगा, कितने प्रतिशत उम्मीद है ये भी जानेंगे ?
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चंद्रयान 2 से चंद्रयान 3 में क्या क्या परिवर्तन किये गए है ?
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चंद्रयान 3 का सफल होना क्यों जरुरी है भारत के लिए ?
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भविष्य में इस मिशन से भारत को क्या फायदे हो सकते है ये भी जानेंगे ?
चलिए अब विस्तार से चर्चा करते है.......
Chandrayaan 3: How to make a safe landing on the Moon -
बचपन में हम सब ने 1955 में आई राजेंद्र कुमार और गीता बाली अभिनीत फ़िल्म वचन का फेमस song "चंदा मामा दूर के" कभी ना कभी सुना होगा, आशा भोसले द्वारा लिखा ये गीत आज भी उन भूली बिसरी यादों को ताजा कर देता है हालांकि जिस समय ये song रिलीज हुआ था उस समय असलियत में चाँद भारत की पहुँच से काफी दूर था क्योंकि इंडियन स्पेस प्रोग्राम की फॉर्मल शुरुआत 15/08/1969 को उस दिन हुई जब भारतीय सरकार द्वारा ISRO को स्टैबलिश किया गया हालांकि इससे लगभग एक महीने पहले ही अमेरिका 20 July को अपने Apollo 11 मिशन के सहारे चाँद पर कदम रखने वाला पहला देश बन चुका था वहीं दूसरी तरफ भारत को चंद्रमा की Orbit तक पहुंचने में लगभग चार दशक लग गए भारत का ये लंबा इंतजार फाइनली साल 2008 में खत्म हुआ जब इसरो ने पहला मून मिशन चंद्रयान 1 लॉन्च किया. 22/10/2008 को लॉन्च हुए इस मिशन में ऑर्बिटर और इंपैक्टर शामिल थे 312 दिन रहने के बाद ऑर्बिटर मॉडुल मैलफंक्शन कर गया और 95% ऑब्जेक्टिव अचीव करने के बावजूद इस मिशन को फेल्यर माना गया क्योंकि इस मिशन का ऑपरेशनल पीरियड दो साल डिक्लेर किया गया था हालांकि भले ही मिशन फेल हो गया लेकिन इस मिशन ने भारतीय वैज्ञानिको के मन में ये उम्मीद जगा दी कि अब चाँद हमारी पहुँच से ज्यादा दूर नहीं. इसरो ने चंद्रयान 2 मिशन पर काम करना शुरू किया| पहले मिशन के 11 साल बाद 22/07/2019 में चंद्रयान मिशन के सेकंड मिशन को लॉन्च किया गया इस बार इस मिशन में तीन मॉड्यूल्स भेजे गए जिसमें ऑर्बिटर विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर शामिल थे और मॉड्यूल का काम मून के अराउंड रिजॉल्व करके डेटा को कलेक्ट करना था वहीं लैंडर मॉड्यूल का काम सरफेस पर लैंड करना. लैंडर मॉड्यूल के अंदर से निकलने वाला रोवर का काम मॉड्यूल सरफेस पर मूवमेंट करके सैम्पल्स इकट्ठा करना था इसरो ने इस मिशन से मून के साउथ पोल पर सॉफ्ट लैन्डिंग करने का टारगेट सेट किया था वह साउथ पोल जिसे मून की डार्क साइड कहा जाता है और जो पार्ट अर्थ से डाइरेक्ट विज़िबल नहीं होता अगर इसरो इस सॉफ्ट लैन्डिंग को करवाने में कामयाब हो जाता तो हम उन पर सॉफ्ट लैन्डिंग करने वाले चौथे देश और साउथ पोल पर सॉफ्ट लैन्डिंग करने वाले पहले देश बन जाते लेकिन दुर्भाग्यवश मून सरफेस से सिर्फ 2.1 किलोमीटर की दूरी पर विक्रम मॉड्यूल में सॉफ्टवेयर गिलिच की वजह से कनेक्शन टूट गया और लैंडर मॉड्यूल क्रैश लैंड कर गया इसरो का ये हाइली एंबिशियस मिशन फेल हो गया जिसके बाद इसरो को इंटरनेशनल मीडिया से लेकर देश भर में काफी क्रिटिसिजम झेलना पड़ा लेकिन अपनी इस असफलता से निराश ना होते हुए इसरो ने दोगुने जोश के साथ अगले मिशन की तैयारी शुरू कर दी और महज चार साल बाद 14/07/2023 को अपना तीसरा मून मिशन चंद्रयान 3 लॉन्च कर दिया. चंद्रयान 3 में ऑर्बिटर मॉड्यूल को शामिल नहीं किया गया है और इसमें सिर्फ लैंडर और रोवर मॉड्यूल मौजूद हैं चाँद के सर्फेस पर सॉफ्ट लैंडिंग करने के लिए चंद्रयान 2 के बाद इसरो का दूसरा अटेम्प्ट होगा हालांकि मिशन बिल्कुल भी आसान नहीं होने वाला है क्योंकि अब तक सिर्फ यूनाइटेड स्टेटस ऑफ अमेरिका, रशिया, और चाइना ही वो तीन ऐसी कन्ट्रीज है जो इस मिशन को पूरा कर पाई है जापान की प्राइवेट स्पेस कंपनी आई स्पेस ने हकुडो आर नाम का ऐसा ही एक मिशन सिमिलर ऑब्जेक्टिव के साथ लॉन्च किया था लेकिन वो मिशन भी फेल हो गया था इस बार इसरो ने चंद्रयान 2 की गलतियों से सीखते हुए चंद्रयान 3 को डिजाइन किया है ताकि इस बार सॉफ्ट लैन्डिंग को अचीव किया जा सके |
करेंट अपडेट के अकॉर्डिंग चंद्रयान 3 ने अर्थ के मल्टिपल रेवोल्यूशन को कंप्लीट कर लिया है और करेंट्ली वो मून की ऑर्बिट में रिवॉल्व कर रहा है वहीं 23/08/023 को चंद्रयान 3 का लैंडर मॉड्यूल सॉफ्ट लैन्डिंग अटेम्प्ट करेगा इसलिए हम अब समझेंगे कि चंद्रयान कैसे इनिशियल फेस में लॉन्च हुआ, कैसे अर्थ से मून की ऑर्बिट में उसे इंजेक्ट किया गया और कैसे वो सॉफ्ट लैन्डिंग को अटेम्प्ट करेगा और साथ ही चंद्रयान 3 में मौजूद पेलोड्स और उनके बारे में भी हम जानेंगें.
चलिए शुरू करते हैं चंद्रयान 3 को 14/07/2023 के दिन 2:35 PM पर आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा मैं सिचूऐटिड सतीश धवन स्पेस सेंटर से लॉन्च किया गया. चंद्रयान 3 को लॉन्च करने के लिए LVM 3 या Launch Vehicle Mark 3 का इस्तेमाल किया गया इस लॉन्च को पहले GSLV Mark 3 यानी Geosynchronous Satellite Launch Vehicle के नाम से जाना जाता था इससे पहले इस लॉन्च व्हीकल से तीन ऑपरेशनल मिशन्स को लॉन्च किया जा चुका है और ये फोर्थ ऑपरेशनल मिशन था LVM 3 ने टोटल तीन स्टेज में चंद्रयान 3 को लॉन्च किया|
पहली स्टेज थी सॉलिड स्टेज, इस में Two S 2000 सॉलिड रॉकेट बूस्टर्स का यूज़ किया गया ताकि टेकऑफ के लिए रिक्वायर्ड थ्रस्ट को जेनरेट किया जा सके. सॉलिड फ्यूल इस्तेमाल करने का सबसे बड़ा रीज़न ये होता है कि यह फ्यूल लिक्विड फ्यूल के कम्पेरिज़न में काफी ज्यादा थ्रस्ट जेनरेट करता है लेकिन इसका एक डिसएडवांटेज भी है एक बार एक नाइट होने के बाद थ्रस्ट को रेग्युलेट नहीं किया जा सकता यानी इस स्टेज को टर्न ऑफ नहीं किया जा सकता विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर में डेवेलप 25 meter height वाले इस बूस्टर में फ्यूल के रूप में HTPB यानी Hydrocsil Terminate Poly Betadine का यूज़ किया जाता है एंजल थ्रस्ट प्रोवाइड करने के बाद ये सॉलिड बूस्टर्स लॉन्च व्हीकल से सेपरेट हो गए थे जिसके बाद लॉन्च व्हीकल का सेकंड स्टेज इग्निशन शुरू हुआ |
सेकंड स्टेज यानी L110 Liquid Stage को दो विकास इंजन पावर देते हैं जिन्हें Liquid Propulsion System सेंटर में डेवलप किया गया है इस लिक्विड स्टेज में UTH यानी Unsymmetrical Try Ethel Hydrazine और H2O का इस्तेमाल किया जाता है लिक्विड स्टेज का फ्यूल यूज़ हो जाने पर ये स्टेज भी लॉन्च व्हीकल से सेपरेट हो गई और उसके बाद थर्ड स्टेज इग्नाइट हुई |
थर्ड स्टेज यानी C 25 Cryogenic Stage जिसे Liquid Propulsion System Centre द्वारा ही डेवलप किया गया है Cryogenic Stage में Extremely Low Temperature वाले फ्यूल्स का इस्तेमाल किया जाता है और यह सबसे Powerful Stage होती है लॉन्च व्हीकल के स्टेज में फ्यूल के रूप में Liquid Oxygen और Liquid Hydrogen का इस्तेमाल किया जाता है और फिर व्हीकल की लॉन्चिंग के बाद शुरू हुआ चंद्रयान 3 का सेकंड फेस.
लगभग पांच दशक पहले अमेरिका ने मून के लिए जो मिशन लॉन्च किया था उससे मून तक पहुंचने में सिर्फ चार दिन लगे थे वहीं भारत के चंद्रयान मिशन को इसी same journey को कंप्लीट करने के लिए एक महीने से भी ज्यादा का समय लग रहा है और उसका सबसे बड़ा कारण है चंद्रयान 3 द्वारा same journey के लिए लिया गया डिफ़रेंट रूट. अर्थ की orbit में स्टैब्लिश होने के बाद चंद्रयान 3 ने अर्थ के पांच Revolutions कंप्लीट किये हर Revolution के बाद चंद्रयान 3 की हाइट को बढ़ाया गया और हाइट बढ़ाने के साथ साथ चंद्रयान 3 की Velocity भी बढ़ती गई फिर पूरा होने के बाद चंद्रयान 3 की Velocity इतनी हो गई की उसको मून की ऑर्बिट में प्लेस कर दिया गया इस प्रोसेस को Trans Lunar Injection कहा जाता है अब चंद्रयान 3 मून के अराउंड रिवॉल्व कर रहा है और हर एक रिवोल्यूशन के बाद चंद्रयान 3 की हाइट को डिक्रीस किया जा रहा है डिक्रीस करते हुए चंद्रयान 3 की हाइट को मून सरफेस के पास लाया जाएगा. लूनर सरफेस के लगभग 100 किलोमीटर ऊपर लैंडर अपने आप को Propulsion module से डिटैच कर लेगा और उसके बाद मून सरफेस पर सॉफ्ट लैन्डिंग अटेम्प्ट करेगा इस पूरे जर्नी को कंप्लीट करने में चंद्रयान 3 को एक महीने से ज्यादा का समय लगेगा लेकिन जिंस जर्नी को कंप्लीट करने में दूसरी स्पेस एजेंसीज ने एक हफ्ते से भी कम का समय लिया उसी जर्नी को पूरा करने में इसरो को इतना लंबा समय क्यों लग रहा है और आखिर चंद्रयान 3 ने अर्थ के इतने रिवोल्यूशन क्यों लिये. इसका सीधा सा जवाब है कि ISRO चंद्रयान 3 की जर्नी में अर्थ की ग्रेविटी का यूज़ करना चाहता था आसान भाषा में समझें तो अर्थ की ग्रेविटी किसी रॉकेट के लिए वही काम करती है जो फ्यूल करता है CAPLER का सेकंड लॉ कहता है कि सैटेलाइट और पैरेंट बॉडी को कनेक्ट करने वाली लाइन Equal Interval Of Time में Equal Area कवर करती है इसका सीधा सा मतलब यही है की सैटेलाइट जैसे जैसे पैरेट बॉडी के करीब आएगी वैसे ही उसकी Velocity बढ़ती जाएगी इसी प्रॉपर्टी का इस्तेमाल करके इसरो चंद्रयान 3 को मिनिमम फ्यूल का यूज़ करके पावर देते हुए उसे orbit तक पहुंचा रहे हैं यहाँ एक और सवाल आता है कि आखिर इसरो ने डाइरेक्ट फ्लाइट का इस्तेमाल करते हुए चंद्रयान 3 को क्यों नहीं भेजा इसका रीज़न है कॉस्ट इफेक्टिवनेस अगर अर्थ से किसी रॉकेट को डाइरेक्टली मून की तरफ एक स्ट्रेट पथ में लॉन्च किया जाए तो उसे पहुंचाने में बहुत कम टाइम लगता है लेकिन उस प्रोसेस मैं स्पेस एजेंसी को काफी बड़ा हेवी और एक्स्पेन्सिव रॉकेट डेवलप करना पड़ता है स्ट्रेट पाथ में मून पर लैंड करने के लिए लगभग 3,84,000 किलोमीटर के डिस्टेंस कवर करनी पड़ती है और इतनी लंबी डिस्टैन्स को ट्रैवल करने के लिए रॉकेट में Enormous amount of fuel की जरूरत होती है और रॉकेट में इस्तेमाल होने वाला फ्यूल काफी एक्स्पेन्सिव हो जाता है और यह रॉकेट की वेट को भी बढ़ा देता है यानी अगर रॉकेट में ज्यादा फ्यूल डालना है तो उसके लिए रॉकेट को भी पॉवरफुल बनाना पड़ेगा for example 1969 में Saturn V रॉकेट Apollo 11 को मून तक लेकर गया था जिसकी हाइट 363 feet थी उसके कंपैरिजन में चंद्रयान 3 को लॉन्च करने वाले LVM 3 की Height सिर्फ 142 feet है ये सब कुछ मिशन की कॉस्ट में ऐड हो जाता है और इसीलिए ISRO के अलावा मून मिशन को कंप्लीट करने वाले सभी स्पेस एजेंसी का बजट काफी हाई था इसरो चंद्रयान 3 मिशन को सिर्फ 615 Crore में पूरा कर रहा है क्योंकि बहुत बड़ा माइलस्टोन है इतनी कम कॉस्ट में मिशन को पूरा कर पाने का रीज़न है कि इसरो चंद्रयान 3 को मिनिमम फ्यूल के साथ मून पर लैंड करवाएगा इन सब प्रोसेस के बाद आता है चंद्रयान 3 का फाइनल फेस यानी लैन्डिंग फेस|
सॉफ्ट लैंडिंग के दौरान चंद्रयान 3 को Menuvar किया जाएगा यह Menuvar बिल्कुल भी आसान नहीं होते क्योंकि उसके लिए एक्स्ट्रीमली प्रीसाइज कैल्कुलेशन्स की नीड होती है सॉफ्ट लैंडिंग के दौरान Menuvering के लिए इसरो द्वारा कैलिफोर्निया में Sweated Jet Propulsion lab की हेल्प ली जा रही है इन सभी कैलकुलेशन के बाद चंद्रयान 3 का सबसे डिफिकल्ट फेस स्टार्ट होगा यानी की इसका लैन्डिंग फेस.
इसरो के चीफ का कहना है कि सॉफ्ट लैंडिंग के दौरान लगभग पंद्रह मिनट का समय लगेगा और ये पूरा ड्यूरेशन 15 minutes of terror जैसा होगा. सॉफ्ट लैन्डिंग फेस के स्टार्ट होने के साथ ही Vikram lander, Propulsion module से सेपरेट होकर 100/30 किलोमीटर की Orbit मे Enter करेगा यानी इस समय पर लैंडर मून से Maximum 100 किलोमीटर और Minimum 30 किलोमीटर की दूरी पर होगा मून सरफेस से 30 किलोमीटर ऊपर लैंडर अपने Thrusters का इस्तेमाल करना शुरू करेगा और सरफेस पर लैंडिंग स्टार्ट करेगा. Gravity के कारण लैंडर तेजी से नीचे जाएगा पर इस दौरान लैंडर के Thrusters को यूज़ करके लैंडर को धीरे धीरे नीचे लाया जाएगा इस पूरी प्रोसेस को Power Breaking Faze कहा जाता है इस फेस में बेहद जरूरी है की इंजन सही समय पर और सही ऐटिट्यूड पर अपने Thrusters को फायर करें इसके साथ ही Minimum Possible Field को यूज़ करे और लूनर सरफेस को Accurately स्कैन करें जब ये सारी प्रोसेस Precaution के साथ पूरी होगी तो ही Soft landing Possible हो पायेगी ये पूरा प्रोसेस ऑटोनॉमस है यानी की अर्थ से इसे गाइड नहीं किया जा सकता. चंद्रयान 2 के दौरान लैंडर के फेल्यर का सबसे बड़ा रीज़न था कि उस लैंडर में ये कैपेबिलिटी नहीं थी कि वो अपने आप को Reorient कर पाए यानी लैंडिंग के दौरान अगर लैंडर का डरेक्शन या उसका एंगिल डिस्टर्ब हो जाए तो लैंडर ऑटोमैटिकली अपनी ओरिजनल पोज़ीशन पर वापस आ सके लेकिन चंद्रयान 3 में इस फीचर को भी ऐड किया गया है जिससे ऐसी कोई भी सिचुएशन होने पर लैंडर अपने आप को 90 degree एंगिल पर रीओरिएंट कर लेगा जो उसे क्रैश होने से बचाएगा और सेफ लैंडिंग को insure करेगा उसके बाद लगभग मून सरफेस से 100 metre की उंचाई पर लैंडर पूरे लूनर सरफेस को एक बार फिर से स्कैन करेगा ताकि Obstacle का पता लगाया जा सके अगर वहाँ पर कोई Obstacle मौजूद होगा तो स्कैन करके अपने लिए एक Best लैन्डिंग साइड खोजेगा और अगर कोई Obstacle मौजूद नहीं होगा तो धीरे धीरे लैंडर मून सरफेस पर सॉफ्ट लैंड कर जायेगा. सॉफ्ट लैन्डिंग सबसे मुश्किल काम इसलिए है क्योंकि इस दौरान जो लूनर मॉडुल 6000 kilometre / hour की रफ्तार से चल रहा था उसे स्पीड को कम करके ज़ीरो करना होगा और कहानी यहीं खत्म नहीं होती स्पीड लक्षण अचीव करने के बाद भी एक और समस्या का सामना विक्रम लैंडर को करना होगा. सॉफ्ट लैंडिंग करते समय विक्रम लैंडर के Thrusters से मून सरफेस से Lunar Dust उड़ने लगेगी ये Lunar Dust कैमरा लेंस को नेगेटिवली इफ़ेक्ट कर सकती है और फॉल्टी रीडिंग को ट्रिगर कर सकती है नासा के Apollo 15 mission के साथ कुछ ऐसा ही हुआ था जब लैंड होने के बाद Thrusters के Park की वजह से Lunar Dust का एक क्लाउड मून सरफेस के ऊपर बन गया था इस वजह से कुछ मिनट तक Completely blood images अर्थ तक ट्रांसमिट हो रही थी चंद्रयान 2 के लैंडर में गिलेचस के बाद चंद्रयान 3 के लैन्ड क्लस्टर्स को इम्प्रूव किया गया है चंद्रयान 2 में जहा कुल पांच Thrusters लगे हुए थे वहीं चंद्रयान 3 में कुल चार Thrusters लगे हुए हैं जो Equilibrium को मेनटेन करने में काफी हेल्पफुल है इसके अलावा इसरो में Lander Legs को और Sturdy बनाया गया है Large Solar Panels को Install किया गया है Fuel Carrying Capacity को बढ़ाया गया है और Soft Landing Sequences को improve किया गया है साथ ही चंद्रयान 2 के लिए जो लैन्डिंग साइड चूज की गई थी ये लैन्डिंग साइड उससे काफी बड़ी और उसका साइज 4/2 kilometre है लैन्डिंग वेलॉसिटी को भी 2 meter/second से बढ़ाकर 3 meter/second कर दिया गया है लेकिन दोस्तों इतने सारे चैलेंजेस के बावजूद इसरो कॉन्फिडेंट है इस बार चंद्रयान 3 सॉफ़्ट लैन्डिंग के टारगेट को अचीव कर लेगा. लैंड करने के बाद विक्रम लैंडर, प्रज्ञान रोवर को Deployed करेगा और उसके बाद मून सरफेस पर मूवमेंट करके रोवर वहाँ का Chemical Analysis करेगा ये सिक्स व्हील का एक रोबोट व्हीकल है जिसका वेट 26 kilogram है इसकी मिशन लाइफ One Lunar Day होगी और यह मून सरफेस और मून एटमॉस्फियर की Elemental Composition से रिलेटेड डेटा को कलेक्ट करेगा |
चंद्रयान 3 मिशन में एक Lander Module एक Propulsion module और एक Rover मौजूद है लैंडर मून के ऊपर सॉफ्ट लैंडिंग करने की कैपेबिलिटी रखता है और उसके अंदर ही रोवर मौजूद है इस पूरे एक्सपेरिमेंट को conject करने के लिए लैन्ड और रोवर के अंदर Scientific Payloads को Install किया गया है किसी भी सैटेलाइट के अंदर स्पेसिफिक फंक्शन परफॉर्म करने के लिए Payloads को Install किया जाता है पेलोड स्पेस क्राफ्ट के वो एलिमेंट्स है जो मिशन से रिलेटेड डेटा प्रोड्यूस करते हैं और डेटा को वापस अर्थ पर रिले करते हैं हर पेलोड साइज Composition और Capability में अलग अलग होता है और अलग अलग फ़ंक्शन को पूरा करता है सबसे पहले आता है Propulsion Module जो लैंडर और रोवर को 100 Kilometre लूनर ऑर्बिट तक पहुंचाने का काम करता है लूनर ऑर्बिट पर पहुंचने के बाद Propulsion Module, Lander Module से अलग हो जाएगा Propulsion Module में Spectro-polarimetry of Habitable Planet Earth यानी Shape Payload का इस्तेमाल किया गया है इसका काम है रिफ्लेक्टेड लाइट को ऑब्जर्व करके स्मॉलर प्लैनेट्स को सर्च करना और वहाँ पर हैबिटेबिलिटी के पोटेंशिअल को ऐनालाइज करना. विक्रम लैंडर का पहला Payload है CHASTE Payload यानी Chandra’s Surface Thermophysical Experiment(CHASTE) जो थर्मल कंडक्टिविटी और टेम्प्रेचर को मेजर करेगा. दूसरा Payload है ILSA यानी Instrument For Lunar seismic Activity(ILSA) ये Payload लैंडिंग साइट के अराउंड सीज़ टु सिटी को मेजर और रेकोर्ड करेगा. तीसरा Payload है Langmuir Probe जो प्लास्मा डेन्सिटी और उसके वेरिएशन्स का एस्टिमेशन करेगा. फोर्थ Payload है नासा से लिया गया Passive Laser Retroreflector Array जो लूनर लेज़र रेंज की स्टडी करेगा सॉफ्ट लैंडिंग के दौरान लैंडर को असिस्ट करने के लिए ऐडवान्स टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया गया है जैसे सॉफ्ट लैंडिंग के दौरान हाइट को जज और कंट्रोल करने के लिए Laser Doppler Velocimeter और रेगुलर मॉनीटरिंग के लिए Lander Horizontal Velocity Camera. लैंडर की सॉफ्ट लैंडिंग को टेस्ट करने के लिए मून जैसे सिमिलर सरफेस को आर्टिफिशियल क्रियेट करके वहाँ पर लैंडर लेग मेकनिजम की डिफ़रेंट कंडिशन के अंदर टेस्टिंग भी करी गयी थी लैंडर के मून सरफेस पर पहुंचने के बाद Lander Module से Rover अलग हो जाएगा rover में Alpha Particle X-ray Spectrometer और Laser Induced Breakdown Spectroscope जैसे Payloads का इस्तेमाल किया जाएगा इनका काम होगा लैन्डिंग साइड से Elementary Composition को ड्राइव करना |
चंद्रयान 3 एक सिग्नीफिकेंट माइलस्टोन हो सकता है ये इंडिया की साइन्टिफिक प्रोग्रेस और टेक्नोलॉजिकल कैपेबिलिटीज को पूरे विश्व के सामने प्रदर्शित करेगा. चंद्रयान 3 मिशन की सक्सेस ना सिर्फ इंडिया को पूरे वर्ल्ड में ख्याति दिलाएगी बल्कि फ्यूचर लूनर मिशन के लिए नए रास्ते खोलेगा और इंडिया को ग्लोबल स्पेस कम्यूनिटी में एक लीडिंग प्लेयर की तरह स्टैब्लिश भी करेगा. साइंटिफिक अचीवमेंट के अलावा चंद्रयान 3 से इंडिया को कुछ सोशियो इकोनॉमिक बेनिफिटस भी होंगे, उदाहरण के लिए इस मिशन से इन्डिया की स्पेस इंडस्ट्री को एक बूस्ट मिलेगा और उसके साथ ही जॉब्स क्रिएशन भी होगी सिर्फ इतना ही नहीं ये मिशन भारत के यूथ को साइंस ऐंड टेक्नोलॉजी की फील्ड में करिअर शुरू करने के लिए भी इंस्पायर करेगा फिलहाल हम को इस मिशन की सक्सेस के लिए इंतजार करना होगा |
23/08/2023 को चंद्रयान 3 की सक्सेसफुल लैन्डिंग की उम्मीद के साथ इस विषय को विराम देते है |
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Amit Sharma
Writer