Arabs of America drowned in the coup in Niger. coup in niger

नाइजर में तख्तापलटने से अमेरिका के अरबो डूबे ।
नाइजर में तख्तापलट
नाइजर में तख्तापलटने से अमेरिका के अरबो डूबे ।
नाइजर में तख्तापलट
वेस्ट अफ्रीका के नाइजर में 26जुलाई 2023 को नाइजर सेना ने तख्तापलट कर दिया है । नाइजर को नाइजीरिया से कंफ्यूज मत करिएगा, दोनों अलग-अलग देश है। नाइजर फ्रांस का उपनिवेश था, जबकि नाइजीरिया ब्रिटिश उपनिवेश था ।
नाइजर में सेना ने तख्तापलट कर दिया है । पहले राष्ट्रपति मोहम्मद बाझुम को हिरासत में लिया। फिर जरूरी ठिकानों पर वफादार पर पहरा बिठाकर सरकारी चैनल पर ऐलान किया कि देश का मालिक बदल चुका है। अब से हम मालिक है । हमारे सामने सर झुकाना पडेगा । घटनाओं का यह क्रम तख्तापलट करने वालों की रूल बुक का अभिन्न हिस्सा बन चुका है। नाइजर में जो हुआ वह पहले भी तीन बार हो चुका है । और जिस इलाके में नाइजर है उधर तो दस बार तख्तापलट हो चुका है । तख्तापलट उनके रुटीन का हिस्सा है । 23 जनवरी 2022 को बुर्किना फासो में सेना ने राष्ट्रपति रोच कबोरे को सत्ता से बेदखल किया। फिर अंदर खाने विद्रोह हुआ और 8 महीने बाद सेना के दूसरे समुह ने एक और तख्तापलट कर दिया । अगस्त 2022 में माली में भी ऐसा ही हुआ। सेना ने राष्ट्रपति अब्राहिम बौबाकेर की सरकार गिरा दी। अप्रैल 2021 में चाड में ऐसा हुआ । राष्ट्रपति इदरीश डेबी की मौत के बाद उनके बेटे और सेना में जनरल महामत डेबी ने सत्ता हथिया ली। कानूनन संसद के स्पीकर को राष्ट्रपति बनाया जाना था। महावत ने अभी तक चुनाव भी नहीं होने दिया है। 2020 से अब तक 3 साल में सेंट्रल और वेस्ट अफ्रीका में कम से कम 9 बार तख्तापलट की कोशिश हो चुकी है अधिकतर मामलों में तख्तापलट सफल रहा है । इसी वजह से इस इलाके को अंग्रेजी में कुप बेल्ट का नाम दिया गया और इस कुप बेल्ट का लगातार विस्तार हो रहा है। सी ओ यू पी कुप जिसका अर्थ होता है तख्तापलट । नाइजर में कभी तख्तापलट को अपना हथियार बनाने वाले पश्चिमी देश जैसे अमेरिका और फ्रांस दुखी हो गए और इसकी वजह क्या है ? इस पर विस्तार से जानते है।
नाइजर अफ्रीकी महाद्वीप के पश्चिम में पड़ता है । उसकी जमीन कि हर दिशा में पड़ोस है । यानी लैंडलॉक्ड कंट्री है । कुल सात देशों से नाइजर की सीमा लगती है। चार्ड, लीबिया, सीरिया, माली बुर्किना फासो और बेनीन । नाइजर साहिल रीजन का भी हिस्सा है। यह अरबी भाषा का शब्द है। जीसका शाब्दिक अर्थ होता है तट या किनारा । सहारा रेगिस्तान और शबाना के घास के मैदान के बीच के ईलाके को ये नाम दिया गया है । इसका पूर्वी किनारे लाल सागर जबकि पश्चिमी किनारा एटलांटिक सागर से मिलता है । बीच में सूडान चार्ट नाइजर माली और मॉरिटियाना का अधिकांश हिस्सा पड़ता है। बाकी के रहीश इलाके भी अहम देशों में माने जाते है। लोकेशन और डेमोग्राफि कि वजह से नाइजर सबसे जरुरी देशो में गीना जाता है । नाइजर का नामकरण नाइजर नाम से बहने वाली नदी पर हुआ है । नील और कांगो के बाद 4 किलोमीटर से अधिक बेहने वाली नाइजर तीसरी सबसे लंबी नदी है । यह नदी गिनी से निकलकर माली नाइजर बेनिन और नाइजीरिया होते हुए अटलांटिक महासागर में मिल जाती है। नाइजर कि आबादी ढाई करोड़ से ज्यादा है । जिसमें 98 प्रतिशत लोग इस्लाम को मानते हैं। बाकी में ईसाई और दूसरे धर्म के लोग आते हैं । यहाँ के मुसलमानों में भी भारत की तरह दो प्रमुख संप्रदाय हैं । 93 प्रतिशत मुस्लिम सुन्नी है । और 7 प्रतिशत शिया है । यहाँ की करन्सी का नाम है, वेस्ट अफ्रीकन फ्रेंक । एक भारतीय रुपए में 7 से ज्यादा फ्रेंक मिलते हैं। नाइजर की राजधानी का नाम नियामे है । यह देश का सबसे बड़ा शहर भी है । नाइजर में भारत का दूतावास यहीं पर है । भारतीय दूतावास की वेबसाइट पर छपी जानकारी के मुताबिक राजदूत की कुर्सी अभी खाली है । यहाँ का time zone भारत से 4.30 घंटे पीछे है । भारत में रात के 10:00 बजते हैं। तब नाइजर में शाम के 5:30 बज रहे होते हैं। जब अमेरिका और ब्रिटेन ईराक पर हमला करने का बहाना खोज रहे थे। तब कहा गया कि सद्दाम हुसैन परमाणु बम बनाने के लिए वेस्ट अफ्रीका के एक देश से यूरेनियम खरीद रहा है। वेस्ट अफ्रीका का वह देश नाइजर ही था ।
यहाँ ईसा पूर्व 4 से 5 सदी पहले का तुआरेग साम्राज्य था । बाद में यहां पर घाना साम्राज्य, माली साम्राज्य और सोंघाई साम्राज्य । इस्लाम भी अपनी स्थापना के बाद सबसे पहले जिन देशों में पहुंचा उनमें से एक नाइजर था । पर मध्य काल से आप इसका इतिहास समझेंगे तो आपको मौजूदा पृष्ठभूमि ज्यादा स्पष्ट होगी। 1551 का साल था जब मोरक्को ने सोंघाई साम्राज्य को हरा दिया और टिंबक्टू को राजधानी बनाया था । टिंबक्टू आज की तारीख में माली में पडने वाला शहर है । नाइजर में एकजुटता नहीं थी इस लिए छोटे-छोटे साम्राज्य में बट गया। और फिर जब यूरोप के बहुत सारे देश एशिया में अफ्रीका में अपना उपनिवेश बना रहे थे । अपना गुलाम बना रहे थे। ऐसे में 1890 में फ्रांस वेस्ट अफ्रीका में अपने पांव पसार रहा था। उसकी नजर नाइजर पर थी और 1899 में फ्रांस ने पहली कोशिश की और 1905 में फ्रांस की मिलिट्री टेरिटरी का ये हिस्सा बन गया । इस मिलिट्री टेरिटरी में माली और बुरकेना फासो के कुछ हिस्से भी थे । 1922 में फ्रांस ने नाइजर को पूरी तरह से मुकम्मल कोलोनी का दर्जा दे दिया । 1945 में सेकंड वर्ल्ड वॉर खत्म हुआ और उसके बाद नाइजर में भी आजादी की मांग उठी । 1946 में फ्रांस में स्थानीय लोगों को कुछ हक दिए गये। उन्हें फ्रांस की संसद में प्रतिनिधित्व भी मिला। पर इसका फायदा चुनिंदा 1st क्लास के लोगों को मिला जो फ्रांस के प्रति वफादारी रखते थे । पर आम जनता आजादी पर अड़ी रही और आखिरकार 1960 में नाइजर को पूरी आजादी मिल गई । हमानी डिओरी पहले राष्ट्रपति बने । 14 बरस तक उनका शासन चला । उन्होंने एक दलीय व्यवस्था रखी यानी उन्होंने विपक्ष की गुंजाइश नहीं रखी। इस दौरान करप्शन दमन, भूख, सूखा और दूसरी समस्याएं होती गई । 1968 में देश में अकाल पड़ा जनता भूख से मरने लगी। एक दिन पता चला कि डिओरी के मंत्रियों के घर पर अनाज की बोरियां रखी है । जनता इससे भड़क गई और तब मिलिट्री जनरल सेवनी काउंचे ने इसका फायदा उठाया । 1974 में सेना ने सरकार का तख्तापलट कर दिया। यँहा सेना का कब्जा चलता रहा । 1991 के साल में सिविलियन शासन वापस लौटा । पहली दफा नाइजर में मल्टी पार्टी इलेक्शन हुआ। पर उसी साल उत्तरी इलाकों में भयानक अकाल पड़ा और इन सबके बीच तुआरेग कबीलों ने विद्रोह कर दिया। इस विद्रोह को रोकने के लिए 1996 में सेना ने सरकार की कमान फिर अपने हाथ में ले ली । 3 बरस के बाद 1999 में सिविल सरकार आई । मोहम्मद तंजा राष्ट्रपति बने। 10 साल तक सब ठीक रहा । लेकिन 2009 में तंजा ने नेशनल असेंबली भंग कर दी। वैसे भी दिसंबर 2009 में उनका कार्यकाल खत्म होने वाला था । पर वह कुर्सी छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे । जनमत संग्रह करवा के उन्होंने अपना कार्यकाल बढवा लीया पर विपक्ष इस पर नहीं माना । और फरवरी के महीने में हजारों लोग राजधानी में प्रोटेस्ट के लिए खड़े हुए और उन्होंने सेना से हस्तक्षेप की अपील की । 18 फरवरी 2010 की दोपहर सेना ने प्रेसीडेंशियल पैलेस पर हमला कर दिया । तंजा एक मीटिंग में थे। उन्हें वहीं से उठा लिया गया और कुछ वक्त बाद सत्ता बदलने का औपचारिक ऐलान भी हो गया । सेना ने नया संविधान बनाया 2011 में चुनाव करवाए और मोहम्मद इसोफो राष्ट्रपति बने। नाइजर 2010 में बने संविधान के हिसाब से चल रहा है ।और 26 जुलाई तक तो सब ठीक चल रहा था । फिर सेना ने चौथी बार लोकतांत्रिक सरकार को कुर्सी से उतार दिया। फिर संविधान भंग कर दिया । और ऐलान किया कि संविधान भंग कि जा चुकी है । सेना देश को मैनेज कर रही है और दूसरे देश हमारे मामले में दखल ना दें । इसके 4 के मतलब निकलते हैं ।
पहला मोहम्मद बाझुम 2021 के चुनाव में जीत के राष्ट्रपति बने थे। पिछली सरकार में मंत्री थे। इतिहास में पहली बार सत्ता का हस्तांतरण लोकतांत्रिक तरीके से हुआ था। उनका कार्यकाल 2025 में खत्म होने वाला था। सबसे पहले उन्हें हटाया गया नाइजर में लोकतंत्र कायम रखने की गुंजाइश खत्म हो गई।
दूसरा तख्तापलट से पहले तक सेमी प्रेसिडेन्सियल सिस्टम चलता था । यानी कि स्टेट और कार्यपालिका कि सत्ता राष्ट्रपति के पास जब कि सरकार की सत्ता प्रधानमंत्री के पास प्रधानमंत्री के पास नाम मात्र की शक्तियां होती हैं। प्रधानमंत्री संसद के बहुमत दल के नेता और राष्ट्रपति जनता की डायरेक्ट व्यवस्था से चुनाव यह व्यवस्था फिलहाल नहीं है।
तीसरा पूरा कंट्रोल सेना के पास टीवी पर कब्जा हो चुका है। नाइजर की अंतरराष्ट्रीय सीमा और हवाई क्षेत्र को फिलहाल के लिए बंद कर दिया गया है। बाझुम की मौजूदा स्थिति के बारे में कोई जानकारी नहीं है। जो लोग तख्तापलट के विरोध में इकट्ठा हुए थे। उनके ऊपर सेना ने गोलीबारी की माना जा रहा है कि सेना प्रोटेस्ट को बुरी तरह कुचलेगी और उनके दमन का दायरा पता भी नहीं चलेगा ।
चौथी बात कुप के लीडर्स ने साफ कर दिया कि बाहरी दखल को किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं करेंगे । 26 जुलाई की सुबह अमेरिका के विदेश मंत्री एंटोनी ब्लिंकेन न्यूझीलैंड जा रहे थे। फोन पर उन्होंने कहा कोई दिक्कत की बात नहीं । हम साथ देंगे। जब तख्तापलट की बात साफ हो गई तब एक और बयान दिया, राष्ट्रपति बाझुम को रिहा करने की मांग की ।
नाइजर ने इसी कारण बाहरी दखल को रेखांकित किया। बाझुम को पश्चिमी देशों का करीबी माना जाता है । उनके जाने से साहिल डीजे में उनकी पकड़ कमजोर हो सकती है। उन से बचने के लिए वे मिलिट्री ऑपरेशन भी चला सकते हैं। हालांकि अभी तक इस तरह की कार्रवाई के कोई संकेत नहीं मिले हैं । नाइजर में अमेरिकी और दूसरे पश्चिमी देशों की दिलचस्पी की 5 वजह है ।
पेहली साझा हित फ्रांस ने वहाँ 6 दसक तक शासन किया है।
फ्रेंच वहाँ की आधिकारिक भाषा है । 7000 से ज्यादा फ्रेंच लोग नाइजर में लोग रहते है । दशकों के शासन के बाद व्यापारिय हित जुड गये है। अपनी जरूरत कि यूरेनियम के लिए फ्रांस नाइजर पर निर्भर है ।
दूसरा कारण हाल के वर्षों में साहिल का इलाका इस्लामिक स्टेट के आतंकवादीयो की सबसे बड़ी पनाहगाह बन कर उभरा इराक और सीरिया से खदेड जाने के बाद अफ्रीका में अड्डा जमाया। वहीं से लोगों को दुनिया भर में भेजते हैं । यह यूरोप और अमरीका के लिए खतरा है ।
तीसरी बात सहारा के रास्ते घुसने वाले अवैध शरणार्थियों को रोकने में यूरोपीयन यूनियन नाइजर का सहारा लेता है । ब्रिटिश अखबार गार्डियन कि एक रिपोर्ट के मुताबिक 2014 से 2020 के बीच यूरोपीयन यूनियन ने 13,000 करोड़ भी इस लिए दिये थे । ज्यादातर पैसे का इस्तेमाल अवैध शरणार्थियों को रोकने के लिए किया गया था।
चौथी बात साहिल के इलाके में नाइजर एक मात्र पश्चिमी देशों का सहयोगी था । पड़ोस के बुर्किना फासो माली में तख्तापलट के बाद फ्रेंच सेना को निकलने के लिए कहाँ गया। फ्रांस ने इस इलाके में आतंकीयो से लड़ने के लिए उनको मारने लिए नाइजर में सेना उतारी और बेझ बनाया । अब ये बेझ उनसे छीन सकता है ।
पांचवा कारण सेंट्रल ऑफिस अफ्रीका में रूस के वैगनआर ग्रुप की पकड़ मजबूत हो रही है। जिन देशों में तानाशाही सरकार हैं, वहाँ वैगनआर को कांटेक्ट मिले हैं। कई देशों में उनके लड़ाके संसाधनों की लूट से लेकर मानवाधिकार हनन तक शामिल है। इस से पश्चिमी देशों का हित संकट में पड़ता है । ईसे काउंटर करने के लिए नाइजर में खूब पैसा बहाया गया ।
2012 के बाद से अकेले अमरीका ने नाइजर में लगभग 4000 करोड़ खर्च किये है । जीस समय नाइजर में तख्तापलट हुआ है । उसी समय रूस में अफ्रीका रशिया समिति चल रही है । जिसमें रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने ब्लेक सी डील के टूटने से पैदा हुए अनाज का संकट दूर करने का वादा करके, पश्चिमी देशों की मुश्किलें बढ़ा रहे है । नाइजर की घटना ने पश्चिमी देशों को मुश्किल में डाल दिया । उनके पास अगला कदम उठाने के लिए बहुत कम समय बचा है ।
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Writer Ridham Kumar
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