वो आखरी 19 मिनट ........( चंद्रयान-3 )

चंद्रयान -3 के लैंडर की सॉफ्ट लैंडिंग के अहम फेज: लैंडर विक्रम ने अपनी ऊंचाई और गति को हर सेकंड अपने आप कम किया......... और लैंडिंग की जगह चुन्नी।
1. लगभग 25 किमी की ऊंचाई से लैंडर ने 1.7 किमी की गति से उतरना शुरू किया । फिर गति 1.680 मीटर प्रति सेकंड से घटाकर 358 मी .कर दी गई । चंद्रमा से ऊंचाई 7.4 किमी रह गई । इस प्रक्रिया में 11 मिनट लगे।
2. 10 सेकंड तक चलने वाले इस चरण में लेंडर ने अपने 8 थ्रस्टर्स का इस्तेमाल कर खुद को स्थिर रखा । इसी फेज में सेंसर भी सक्रिय हुए ।
3. यहां लैंडिंग से पहले का आखिरी फेज शुरू हुआ । लैंडर 1.3 किलोमीटर तक नीचे उतर आया ।
4. यहां 12 सेकंड मंडराता रहा । (चंद्रयान-2) के आर्बिटर आदि से मिली इमेज से 4 * 2.4 वर्ग किमी की सही जगह चुनी और 2 मिनट में 150 मीटर तक नीचे उतरा ।
5. यहां 22 सेकंड तक मंडराता रहा । फिर सेंसर लैंडर को होरिजेंटल से वर्टिकल स्थिति में ले आए ।
💠 फिनाले := जब 50 मीटर की ऊंचाई पर कोई पहाड़ नुमा चट्टान या गडये का खतरा नहीं दिखा तो इसने दो मीटर सेकंड की गति से उतरना शुरू किया । (चंद्रयान-2) ने इसी फेज में पहुंचने से पहले नियंत्रण खो दिया था ।
💠 अपग्रेड लैंडर: इसरो ने (चंद्रयान-3 ) की सफलता की संभावनाओं को बेहतर, करने के लिए इसमें कई जरूरी बदलाव किए जानिए इसके बारे में.....
(1) उतरने के दौरान यह थ्रस्ट को यह ठीक से कंट्रोल कर सकता है।
(2) खतरों का पता लगाने के लिए दो कैमरे लगाए गए पहले एक ही था ।
(3) तीन दिशाओं से लेंडर की गति को समझने के लिए इसे डॉपलर वेलोसिटी मीटर से लैस किया गया ।
(4) रास्ते ओरिएंटेशन और स्पीड में एडजस्टमेंट कर सके ,इसलिए ज्यादा फ्यूल ले जाने में सक्षम बनाया गया ।
(5) फ्यूल को बड़े परपलशन टैंक में सुरक्षा उपायों के साथ रखा गया, ताकि वह स्थिर रहे।
(6) पांचवें सेंट्रल इंजन को हटा दिया गया, बाकी चारों के थ्रस्ट में बढ़ोतरी की ।
(7) लेंडर के पैरो को ऐसा डिजाइन किया गया कि ज्यादा वजन सह सके ।
(8) ऊर्जा बढ़ाने के लिए इसमें अतिरिक्त सोलर पैनल लगाए गए और उच्च क्षमता वाली बैटरी भी लगाई गई ।
(9) लैंडर नीचे उतरते समय ऊंचाई मापने में सक्षम नहीं रहता, तो वह एक तय स्पीड से नीचे उतरता रहेगा।
(10) उतरते वक्त यह ग्राउंड स्टेशन और (चंद्रयान-2 ) के आर्बिटर से बातचीत कर सकता है ।
